शीर्षक -नेह प्रदीप
आज एक दीपक जला दो
मन की सूनी देहरी पर।
मन अंधेरा तन पे पहरा ,
हैं अगर कुछ मौन से।
नेह का दीपक जला दो,
मेरी उम्मीदों के घर पर।
निज नहीं मेरा यहां कुछ,
दिल की बातें जल रही है।
तमस अब तुम दूर कर दो,
मन की सूनी देहरी पर।
घट रही सांसों की धड़कन,
नेह का अब तेल डालो।
हल्की सी आहट करो तुम,
मन की सूनी देहरी पर।
आज इक दीपक जला दो
मन की सूनी देहरी पर।
अर्चना श्रीवास्तव
शब्द शिल्पी
बस्ती