प्यार करने का हुनर हो ये ज़रूरी तो नहीं। -विनोद उपाध्याय हर्षित।

ग़ज़ल

मेरा हर दिल पे असर हो ये ज़रूरी तो नहीं।
प्यार करने का हुनर हो ये ज़रूरी तो नहीं।।

फूल मजबूर हों दामन मेरा छूने के लिए।
ऐसा जीवन का सफर हो ये ज़रूरी तो नहीं।।

जा चुके सारे है मेहमान तेरी महफिल से।
प्यार में कोई इधर हो ये ज़रूरी तो नहीं।।

धरती डोलेगी तो तस्वीर बदल जाएगी।
फिर वही घर या डगर हो ये ज़रूरी तो नहीं।।

जो भी मिलता है वही हाल तेरा पूछे है।
तेरे आने की ख़बर हो ये ज़रूरी तो नहीं।।

वक्त के साथ ही चलना है जहां में हर्षित ।
अपने ख्वाबों का नगर हो ये ज़रूरी तो नहीं।।

विनोद उपाध्याय हर्षित

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