बस्ती । 28 अगस्त मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी को 128 वीं जयन्ती पर याद किया गया। सोमवार को कलेक्ट्रेट परिसर में प्रेमचंद साहित्य एवं जनकल्याण संस्थान की ओर से आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने उनकी शायरी से जुड़े अनेक पहलुओं पर विस्तार से विमर्श किया।
मुख्य अतिथि साहित्यकार एवं वरिष्ठ चिकित्सक डा. वी.के. वर्मा ने कहा कि फिराक गोरखपुरी की शायरी युगो तक लोगों को दिशा देती रहेगी। ‘बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं ’तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं’’ ‘आई है कुछ न पूछ कयामत कहाँ कहाँ, उफ ले गई है मुझ को मोहब्बत कहाँ कहाँ’’ जैसी अनेक गजलों के रचयिता फिराक गोरखपुरी आज भी लोगों के जुबान पर हैं।
विशिष्ट अतिथि ओम प्रकाश पाण्डेय ने कहा कि मीर तकी मीर और मिर्जा गालिब के बाद हिन्दुस्तान में उर्दू का सबसे महान शायर माना जाता है। उर्दू जबान और अदब की तारीख फिराक गोरखपुरी के बिना अधूरी है। आज भी उनकी शायरी को उसी सिद्दत से पढा, सुना और गुनगुनाया जाता है। उनकी शायरी में इन्सान के भीतर की संवेदनायें मुखरित होती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि फिराक की शख्सियत में इतनी पर्तें, इतने आयाम, इतना विरोधाभास और इतनी जटिलता थी कि वो हमेशा से अध्येताओं के लिए एक पहेली बन कर रहे। तीन मार्च 1982 को भले ही फिराक साहब ने दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी शायरी आज भी मौजूं है। फिराक गोरखपुरी की शायरी लोगों की जिन्दगी से जुडी है।
संचालन करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने कहा कि फिराक की शायरी के विविध आयाम है। और उनमें इतनी पर्तें थी, उनका व्यक्तित्व इतना जटिल और विरोधाभास से भरा था कि वो हमेशा से अपने जाननेवालों के लिए एक पहेली बन कर रहे हैं। उर्दू भाषा के मशहूर रचनाकार फिराक गोरखपुरी का असली नाम रघुपति सहाय था। उनका जन्म 28 अगस्त 1896 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ। इन्हें अरबी, फारसी, अंग्रेजी और संस्कृत की शुरुआती तालीम अपने पिता से हासिल हुई। उनके पिता मुंशी गोरखप्रसाद ‘इबरत’ उस वक्त के प्रसिद्ध वकील और शायर थे। इसलिए शायरी तो फिराक को घुट्टी में ही मिली।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने कहा कि फिराक की शुरुआती शायरी यदि देखें, तो उसमें जुदाई का दर्द, गम और जज्बात की तीव्रता शिद्दत से महसूस की जा सकती है। अपनी गजलों, नज्मों और रुबाइयों में वह इसका इजहार बार-बार करते हैं- “वो सोज-ओ-दर्द मिट गए, वो जिंदगी बदल गई, सवाल-ए-इश्क है अभी ये क्या किया, ये क्या हुआ।’’ फिराकगोरखपुरी ने गुलाम मुल्क में किसानों-मजदूरों के दुःख-दर्द को समझा और अपनी शायरी में उनको आवाज दी। ऐसे महान शायर फिराक युगों तक याद किये जायेंगे।
कार्यक्रम में बी.एन. शुक्ल, बी.के. मिश्रा, राजेन्द्र सिंह राही, दीपक सिंह प्रेमी, विनय कुमार श्रीवास्तव आदि ने फिराक गोरखपुरी के शायरी पर विस्तार से प्रकाश डाला। मुख्य रूप से राघवेन्द्र शुक्ल, कृष्णचन्द्र पाण्डेय, दीनबंधु उपाध्याय, सन्तोष कुमार श्रीवास्तव, आशुतोष प्रताप, छोटेलाल वर्मा, पेशकार मिश्र, दीनानाथ यादव, आशुतोष प्रताप आदि ने फिराक गोरखपुरी को नमन् करते हुये उनकी शायरी पर रोशनी डाली।
मुख्य अतिथि साहित्यकार एवं वरिष्ठ चिकित्सक डा. वी.के. वर्मा ने कहा कि फिराक गोरखपुरी की शायरी युगो तक लोगों को दिशा देती रहेगी। ‘बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं ’तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं’’ ‘आई है कुछ न पूछ कयामत कहाँ कहाँ, उफ ले गई है मुझ को मोहब्बत कहाँ कहाँ’’ जैसी अनेक गजलों के रचयिता फिराक गोरखपुरी आज भी लोगों के जुबान पर हैं।
विशिष्ट अतिथि ओम प्रकाश पाण्डेय ने कहा कि मीर तकी मीर और मिर्जा गालिब के बाद हिन्दुस्तान में उर्दू का सबसे महान शायर माना जाता है। उर्दू जबान और अदब की तारीख फिराक गोरखपुरी के बिना अधूरी है। आज भी उनकी शायरी को उसी सिद्दत से पढा, सुना और गुनगुनाया जाता है। उनकी शायरी में इन्सान के भीतर की संवेदनायें मुखरित होती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि फिराक की शख्सियत में इतनी पर्तें, इतने आयाम, इतना विरोधाभास और इतनी जटिलता थी कि वो हमेशा से अध्येताओं के लिए एक पहेली बन कर रहे। तीन मार्च 1982 को भले ही फिराक साहब ने दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी शायरी आज भी मौजूं है। फिराक गोरखपुरी की शायरी लोगों की जिन्दगी से जुडी है।
संचालन करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने कहा कि फिराक की शायरी के विविध आयाम है। और उनमें इतनी पर्तें थी, उनका व्यक्तित्व इतना जटिल और विरोधाभास से भरा था कि वो हमेशा से अपने जाननेवालों के लिए एक पहेली बन कर रहे हैं। उर्दू भाषा के मशहूर रचनाकार फिराक गोरखपुरी का असली नाम रघुपति सहाय था। उनका जन्म 28 अगस्त 1896 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ। इन्हें अरबी, फारसी, अंग्रेजी और संस्कृत की शुरुआती तालीम अपने पिता से हासिल हुई। उनके पिता मुंशी गोरखप्रसाद ‘इबरत’ उस वक्त के प्रसिद्ध वकील और शायर थे। इसलिए शायरी तो फिराक को घुट्टी में ही मिली।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने कहा कि फिराक की शुरुआती शायरी यदि देखें, तो उसमें जुदाई का दर्द, गम और जज्बात की तीव्रता शिद्दत से महसूस की जा सकती है। अपनी गजलों, नज्मों और रुबाइयों में वह इसका इजहार बार-बार करते हैं- “वो सोज-ओ-दर्द मिट गए, वो जिंदगी बदल गई, सवाल-ए-इश्क है अभी ये क्या किया, ये क्या हुआ।’’ फिराकगोरखपुरी ने गुलाम मुल्क में किसानों-मजदूरों के दुःख-दर्द को समझा और अपनी शायरी में उनको आवाज दी। ऐसे महान शायर फिराक युगों तक याद किये जायेंगे।
कार्यक्रम में बी.एन. शुक्ल, बी.के. मिश्रा, राजेन्द्र सिंह राही, दीपक सिंह प्रेमी, विनय कुमार श्रीवास्तव आदि ने फिराक गोरखपुरी के शायरी पर विस्तार से प्रकाश डाला। मुख्य रूप से राघवेन्द्र शुक्ल, कृष्णचन्द्र पाण्डेय, दीनबंधु उपाध्याय, सन्तोष कुमार श्रीवास्तव, आशुतोष प्रताप, छोटेलाल वर्मा, पेशकार मिश्र, दीनानाथ यादव, आशुतोष प्रताप आदि ने फिराक गोरखपुरी को नमन् करते हुये उनकी शायरी पर रोशनी डाली।
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