गाजर घास से होती है दूर भयंकर बीमारियां- प्रो. श्रीराम सिंह 

मीरजापुर24 अगस्त  उत्तर प्रदेश केकाशी हिन्दू विश्वविद्यालय कृषि विज्ञान केन्द्र, बरकछा-मीरजापुर में सप्ताहव्यापी गाजर घास जागरूकता कार्यक्रम 16 से 22 अगस्त, 2023 तक आयोजित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ केन्द्र के अध्यक्ष प्रो. श्रीराम सिंह और सभी उपस्थित वैज्ञानिकगण द्वारा भारतरत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की मूर्ति पर माल्यार्पण के साथ हुआ। कार्यक्रम में केन्द्र के वैज्ञानिकगण प्रो गुरू प्रसाद सिंह, प्रो संत प्रसाद, डा. जय प्रकाश राय, डा. सुनील कुमार गोयल और डा एस एन सिंह ने गाजर घास की पहचान, उससे होने वाले फायदे और नुकसान आदि विभिन्न विषयों पर विचार व्यक्त किए। मुख्य वक्तव्य का प्रस्तुतिकरण प्रो श्रीराम सिंह ने अपने सम्बोधन से किया। प्रो श्रीराम सिंह ने बताया कि गाजर घास का पौधा सर्वप्रथम भारत में 1955 में पूना में देखा गया, जो धीरे धीरे पार्कों, सड़क, रेल लाइन, नहरों की पटरियो, खेल के मैदान और अन्य खाली जगहों पर होने लगा। अब खेतों के साथ ही फसलों में भी होने लगा है।वर्तमान में भारत में लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर में फैल चुकी है। गाजर घास मानव समाज में एलर्जी, दमा, अस्थमा, एक्जिमा, श्वांस रोग, वहीं पशुओं में पेट की बीमारियां, अपच, अफरा आदि बीमारियां होती हैं। कृषि फसलों में होने पर 35 से 60 प्रतिशत उत्पादन प्रभावित करती है। इस तरह हमारे पूरी जैव विविधता को ख़तरा है।जिससे निजात पाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने की जरूरत है। सामूहिक रूप से खर पतवार नियंत्रण कार्यक्रम आयोजित कर, जन समुदाय में जागरुकता अभियान चलाकर, जैविक नियंत्रण अपनाकर, कम्पोस्ट बनाकर इसके नुकसान से बचा जाना चाहिए। गाजर घास के एक पौधे से 10000 से 35000 तक बीज पैदा होते हैं और बडे ही आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान सुदूर तक चले जाते हैं। इस तरह यह एक जैविक आतंकवादी की तरह कार्य करती है। जिसे समूल नष्ट किया जाना चाहिए।तत्पश्चात क्विज, वाद विवाद, निबंध लेखन आदि कार्यक्रम आयोजित किए गए। जिसमे किसानों, महिलाओं के साथ ही कृषि स्नातक के छात्र, छात्राओं ने बढ चढ़कर भाग लिया। सम्पूर्ण कार्यक्रम का संयोजन डा एस एन सिंह ने किया। इस आयोजन की सर्वत्र सराहना  की जा रही है।

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