यों कोविड काल से ही चीन की अर्थव्यवस्था डावांडोल है। पर अब लाल झंडी लिए हुए हैं। ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दो साल में पहली बार गुजरे महीने खुदरा कीमतों में गिरावट देखी गई। साल-दर-साल पैमाने पर जून 2023 तक रिटेल प्राइस इंडेक्स में कोई बदलाव नहीं आया था।पर जुलाई 2023 में इसमें 0.3 प्रतिशत की गिरावट आई।जाहिर है लोग खरीदारी कम कर रहे है। जुलाई के आंकड़े, सन् 2021 की शुरूआत के बाद पहली बार चीन में नकारात्मक मुद्रास्फीति की स्थिति दर्शा रहे हैं। सन 2021 में कीमतें घट रहीं थीं क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण मांग कम होने की वजह से पोर्क (सूअर के मांस) की कीमतों में गिरावट थी।
ये आंकड़े आयात-निर्यात के आंकड़ों के जारी होने के अगले दिन आए। विदेश व्यापार के जुलाई आंकडे में आयात-निर्यात में अधिक गिरावट है क्योंकि दुनिया में चीन के माल की मांग कम हो गई है।
चीन के खुदरा व्यापारियों को बिक्री में गिरावट से जूझना पड़ रहा है। मतलब जिन खुदरा व्यापारियों ने महामारी के कारण लगाए गए प्रतिबंधों के हटने के बाद मांग में वृद्धि की उम्मीद में बड़ी मात्रा में माल अपने गोदामों में भर लिया था, उन पर अब कीमतें घटाने का दबाव है। टेस्ला और अन्य कंपनियों द्वारा कारों के दामों में कटौती हुई है। कीमतें घट गईं हैं। कीमतों में कमी आने के बावजूद खरीदारी कम होने के मद्देनजर चीनी कारखाने उत्पादित माल के दाम घटा रहे हैं। चीन की उत्पादक मूल्य मुद्रास्फीति, जो कारखानों द्वारा बेचे जाने वाले माल की कीमतें दर्शाता है, जून में साल-दर-साल के पैमाने पर 5.4 प्रतिशत थी।
हालांकि दूसरी तिमाही में चीनी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर साल-दर-साल के आधार पर 6.3 प्रतिशत रही, लेकिन वह भी उम्मीद से कम थी। वह भी 2022 के उस कमजोर आधार वर्ष के मुकाबले, जब शंघाई और कई अन्य शहरों में लाकडाउन लगा था। दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था पहली तिमाही की तुलना में केवल 0.8 प्रतिशत बढ़ी।
चीनियों को लगता है कि आंकड़े जो दिखा रहे हैं, असल में उससे भी बदतर अर्थव्यवस्था है। छोटे शहरों में घरों की कीमतें घट रहीं हैं। जून में बड़े शहरों में भी यही स्थिति थी। गार्जियन की खबर के मुताबिक चीनी हाऊसिंग कंपनिया बिक्री बढ़ाने के लिए संभावित ग्राहकों को सोने की छड़ें, नई कारें और मोबाईल फोन उपहार में देने की पेशकश कर रहे हैं।जबकि युवा वर्ग रोजगार के मोर्चे पर अंधकारमय हालातों के चलते घर खरीदने का इरादा छोड़ रहे है। इतना ही नहीं शादी और बच्चे पैदा करने के फैसले भी मुल्तवी कर रहे हैं। निवेश घट गया है। विशेषकर विदेशी कंपनियां चीन में और निवेश करने में हिचकिचा रही हैं। स्थानीय शासन संस्थाएं अलग पैसे की कमी से जूझ रहीं हैं।
चीन पुराने अच्छे दिन लौटाने, आर्थिकी में वापिस रफ्तार के लिए संघर्ष कर रहा है। लेकिन निवेशकों और विश्लेषकों के अनुसार चीनी सरकार निश्चिंत है। अधिकारी नकारात्मक मुद्रास्फीति जैसी चिंताओं को तव्वजो नहीं दे रहे हैं। सेन्ट्रल बैंक के डिप्टी गवर्नर लिऊ गुओकींग ने पिछले महीने कहा कि साल की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था के सिकुडऩे की कोई संभावना नहीं है। और यह भी कि महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को दुबारा पटरी पर आने में वक्त लगेगा।
कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि चीन में आगे वस्तुओं और सेवाओं की कितनी मांग होगी, यह बीजिंग के नीतिगत निर्णयों पर निर्भर करेगा। कुछ का सुझाव है कि सरकार को उपभोक्ता खर्च तथा रोजगार सृजन के लिए बड़ी योजना पर अमल करना चाहिए। लेकिन कर्ज के भारी बोझ के चलते, खासकर स्थानीय शासन के स्तर पर, ऐसा करना मुश्किल है। इसकी बजाए अधिकारी मौद्रिक नीति संबंधी कदमों जैसे ब्याज दरों में कमी का सहारा ले रहे हैं। ब्याज दरों में लम्बे समय से लगातार कटौती की जा रही है। लेकिन नकारात्मक मुद्रास्फीति से आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि उपभोक्ता भविष्य में कीमतें घटने की उम्मीद में उत्पादों की खरीदी रोक देंगे। इसके नतीजे में कंपनियां निवेश में कटौती करेंगीं क्योंकि उनका मुनाफा गिरेगा और अंतत: या तो नई नौकरियां मिलना बंद हो जाएंगीं या कर्मचारियों की छटनीहोगी।
खबर के मुताबिक चीनी अधिकारी जाने-माने अर्थशास्त्रियों पर दबाव डाल रहे हैं कि वे नकारात्मक मुद्रास्फीति सहित अर्थव्यवस्था संबंधी निराशाजनक मुद्दों की चर्चा नहीं करें।जाहिर है चीन को अपने नागरिकों की दशा-दिशा और समस्याओं की चिंता नहीं है मगर हां, उसे अपनी आर्थिक शक्ति की इमेज और दीर्घकालीन मंसूबों की चिंता जरूर है!