प्ररेणाओं का गुलदस्ता, चिंतन और मनन कराती कविताओं का संग्रह
पुस्तक का नाम: ज़िंदगी है… कट ही जाएगी
रचयिता: सुधीर श्रीवास्तव (गोंडा, उत्तर प्रदेश)
विधा: काव्य-संग्रह
प्रकाशक: वैदिक प्रकाशन हरिद्वार
पुस्तक मूल्य: ₹199/-
समीक्षक: डॉ. अमित कुमार बिजनौरी
परिचय :-
कवि सुधीर श्रीवास्तव का काव्य-संग्रह “ज़िंदगी है… कट ही जाएगी” आधुनिक हिंदी कविता की उस परंपरा को आगे बढ़ाता है जिसमें जीवन, समाज और अध्यात्म एक साथ चलते हैं। यह संग्रह संवेदना, संस्कृति, आस्था, संघर्ष और आत्मावलोकन का संगम है।
कवि की दृष्टि केवल व्यक्तिगत नहीं, सामूहिक भी है — वह व्यक्ति की पीड़ा को समाज की पीड़ा में और समाज की चेतना को व्यक्ति के अंतर्मन में बदल देता है।
विषय-वस्तु और भाव-विश्व :-
पुस्तक की कविताएँ जीवन की विविध परतों को उजागर करती हैं।
इनमें कहीं पारिवारिक रिश्तों की गहराई है, कहीं समाज की विसंगतियों का कटाक्ष, और कहीं ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा।
1. रिश्तों की कद्र — यह कविता आज के कृत्रिम सामाजिक परिवेश में रिश्तों की वास्तविकता पर प्रश्न उठाती है। कवि लिखते हैं कि “रिश्ते हैं तो रिश्तों की कद्र होनी चाहिए,” और यह पंक्ति पूरी कविता का सार बन जाती है।
2. मेरी खामोशी — यहाँ कवि ने मौन को कमजोरी नहीं, बल्कि आत्मबल का प्रतीक बताया है। “अपनी खामोशी का मुझे इतिहास बनाना है” — यह पंक्ति आत्मसंयम की ऊँचाई को दर्शाती है।
3. चूल्हे की रोटी — यह कविता भारतीय गृहिणी और मातृत्व की गरिमा का जीवंत चित्र है। माँ के हाथों की सोंधी रोटी यहाँ सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि ‘संस्कारों की महक’ बन जाती है।
4. राम जीवन मंत्र है, रामराज्य का सपना, और माँ कौशल्या के बिना — ये कविताएँ धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक चेतना से ओतप्रोत हैं। कवि ने राम को केवल देवता नहीं, बल्कि “जीवन-दर्शन” के रूप में प्रस्तुत किया है।
5. कुदरत की मार, खुद को नहीं बचा पाते, और लोग पथ से भटक रहे हैं — इन रचनाओं में सामाजिक यथार्थ की पीड़ा और व्यवस्था पर प्रहार मिलता है।
6. मजदूर नहीं श्रमवीर — यह कविता आम जन के श्रम को सम्मान देती है, और बताती है कि असली नायक वही हैं जो कठिन परिस्थितियों में भी उम्मीद बनाए रखते हैं।
कवि का दृष्टिकोण
सुधीर श्रीवास्तव की कविताएँ जीवन की गहराइयों से निकली हुई सच्चाइयाँ हैं।
उनका दृष्टिकोण व्यावहारिक और मानवीय है। वे न तो केवल उपदेश देते हैं, न केवल भावुकता में बहते हैं—बल्कि संवेदना और विवेक का सुंदर संतुलन साधते हैं।
उनकी कविताओं में संवाद की प्रवृत्ति है—जैसे कवि अपने पाठक से सीधे बात कर रहा हो। यह शैली लोकधर्मी है, जो कविता को हर वर्ग तक पहुँचाती है।
भाषा और शिल्प
कवि की भाषा सरल, प्रवाहमयी और आत्मीय है। इसमें आडंबर या कृत्रिमता नहीं है।
वे बोलचाल के शब्दों से भावों का ऐसा संसार रचते हैं, जिसमें पाठक खुद को पहचान लेता है।
कहीं लयात्मकता है, कहीं गद्यात्मक सहजता—दोनों का संतुलन इस संग्रह की बड़ी खूबी है।
काव्य में अनुभव की सच्चाई प्रधान है। लेखक की पंक्तियाँ सीधे दिल में उतरती हैं—क्योंकि वे जीवन से उठी हैं, जीवन को ही वापस लौट जाती हैं।
आस्था और दर्शन :-
इस संग्रह में धार्मिकता का स्वर गहरा है, परंतु यह अंध-आस्था नहीं, बल्कि “आध्यात्मिक जागरूकता” है।
कवि का “राम” किसी विशेष समुदाय का नहीं, बल्कि सार्वभौमिक चेतना का प्रतीक है।
“राम जीवन मंत्र है” में वे कहते हैं —
राम कोई चीज़ नहीं, जो इधर-उधर खोज रहे हो,
ध्यान से खुद में ही झाँकिए, कण-कण में ही राम हैं।”
निष्कर्ष :-
प्रस्तुत पुस्तक प्रिय पाठकों को पढ़कर सोचने के लिए मजबूर करती है कि जो जिंदगी को बोझ समझते है । यह जिंदगी एक खूबसूरत किताब है यही संदेश कवि ने अपनी पुस्तक के माध्यम से देने का प्रयास किया है । उन सभी पाठकों और नवांकुरों को अवश्य पढ़नी चाहिए, जो साहित्य की यात्रा के माध्यम से सफर कर रहे है ।
अंत में कवि को मेरी ओर से धरा भर शुभकामनाएं मंगल कामनाएं सहित हार्दिक बधाई ।
डॉ अमित कुमार बिजनौरी
बिजनौर उत्तर प्रदेश
99277 63734