भागवत कथा कल्पबृक्ष के समान -सत्यम सांकृत महाराज

क़ुदरहा, बस्ती। रामकथा हमे जीवन जीने की कला सिखाती है तो भागवत कथा हमे मोक्ष प्रदान करती है। भागवत कथा की सार्थकता तभी सिद्व होती है जब इसे हम अपने ब्यवहारिक जीवन में उतारते हैं। अन्यथा यह कथा केवल मनोरंजन मात्र बनकर रह जाती है। भागवत कथा श्रवण से मन का शुद्विकरण तो होता ही है इससे संशय भी दूर हो जाता है और मन को शान्ती मिलती है। ईश्वर से सम्बन्ध जोड़कर हम हमेंशा के लिए उन्हें अपना सकते है। भागवत कथा कल्पबृक्ष के समान है।
        यह सदविचार काशी से आये राष्ट्रीय कथा वाचक सत्यम सांकृत महाराज जी ने प्रवचन सत्र में व्यक्त किया। वे सोमवार को छरदही में चल रही नौ दिवसीय श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन ब्यास पीठ से श्रद्धालुओं को भागवत कथा की महत्ता पर प्रकाश डाल रहे थे। उन्होने कहा कि राजा परीक्षित ने लोक कल्याण के लिए श्री शुकदेव जी से प्रश्न किया कि म्रियमाण ब्यक्ति का क्या कर्तब्य है। भयग्रस्त प्राणी को मृत्यु के भय से मुक्त होने के लिए परमात्मा के शरण मे रहकर उनके महिमा का गुणगान करना चाहिए । इससे भगवान के स्वाभाव व स्वरुप का ज्ञान होता है ।
    मुख्य यजमान हरेंद्र प्रसाद दुबे, हरिद्वार दुबे, वेद मणि दुबे, बाबूराम, अभिषेक कुमार, गंगाराम, आनंद दुबे, अजय, सतीश तिवारी, रामवृक्ष मिश्रा, राकेश दुबे, राम प्रगट उपाध्याय सहित तमाम लोग मौजूद रहे।