ग़ज़ल
कोई माक़ूल-सी हमको दवा दो
हमें भी दर्द में हंसना सीखा दो
हमारे ख़्वाब आँखों में बसाकर
कभी इन बेघरों को आसरा दो
तुम्हें चाहा तुम्हें पूजा वफ़ा में
हमारी इन ख़ताओं की सज़ा दो
हो ऐसा राज़ जो खुलता नहीं है
ज़रा इस राज़ से पर्दा उठा दो
किसी दिन पास आ बैठो हमारे
जो नफ़रत की है दीवारें गिरा दो
तुम्हें हम आज़माना चाहते हैं
भुला सकते हो तो हमको भुला दो
मुझे मिलना है अब अपनी कजाँ से
मुझे मत ज़िन्दगी की बद्दुआ दो
मुक़ाबिल हो गए जो आँधियों के
“किरण” ऐसे चरागों का पता दो
©डॉ कविता”किरण”✍️