राम सेवा में 45 वर्षों से समर्पित हजारीलाल: संघर्ष से संतोष तक का भावपूर्ण सफर

“अब बस यही इच्छा है – प्रभु श्रीराम को देखते-देखते जीवन का अंत हो”

अयोध्या।
रामनगरी अयोध्या में हजारों लोगों ने राम मंदिर आंदोलन को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया, लेकिन कुछ नाम ऐसे हैं जो बिना किसी प्रचार के, निस्वार्थ भाव से रामसेवा में तल्लीन रहे। ऐसे ही एक कर्मयोगी हैं – हजारीलाल, जो पिछले **45 वर्षों से लगातार भगवान श्रीराम और उनके भक्तों की सेवा में जुटे हैं।

हजारीलाल का जीवन संघर्ष और भक्ति का अद्भुत संगम है। वे बताते हैं, “मैंने वह दौर देखा है जब राम मंदिर के लिए संघर्ष की लहर चली थी। हम भी उसी आंदोलन का हिस्सा थे। उस दौरान एक समय ऐसा भी आया जब मंदिर गिराए जाने की घटना में मेरा एक हाथ तक टूट गया था।”

उनका कहना है कि अयोध्या में आज जो भव्य और दिव्य श्रीराम मंदिर आकार ले रहा है, वह वर्षों के संघर्ष और बलिदान का परिणाम है। “आज जब रामनगरी की बदलती सूरत देखता हूँ, तो मन को संतोष मिलता है। उस संघर्ष में जहां खून बहा, अब वहां शांति और भव्यता है — ये देखकर आत्मा भी मुक्त महसूस करती है।”

हजारीलाल वर्तमान में रामलला के निकट पूजा-पाठ की सामग्री वितरण का कार्य करते हैं, लेकिन इसे वह व्यवसाय नहीं, सेवा मानते हैं। वे कहते हैं, “भगवान श्रीराम की कृपा से हमें यह सेवा मिली है। हमने अपनी पूरी जिंदगी भक्तों की सेवा में लगा दी है। अब यही इच्छा है कि जीवन का अंत भी प्रभु श्रीराम को निहारते हुए हो।”

राम मंदिर आंदोलन के एक गवाह और सेवाभावी साधक के रूप में हजारीलाल आज भी सादगी से, लेकिन पूरी श्रद्धा के साथ रामनगरी में कार्यरत हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि संघर्ष से संकल्प और सेवा से संतोष की प्राप्ति होती है — और यही है अयोध्या की सच्ची आत्मा।