पुस्तक समीक्षा
प्रातः नित्य पाठ करने के लिए सर्वथा उपयुक्त – ‘श्री हनुमंत प्रकाश’
गोरक्षपीठ की नगरी गोरखपुर के विजय प्रताप शाही द्वारा रचित ‘हनुमंत प्रकाश’ खंडकाव्य पाँच सोरठा, इक्यावन दोहे,चार सौ चौपाइयाँ एवं हनुमान जी की स्वरचित आरती से सुसज्जित है। जो नि:संदेह रचनाकार की हनुमान जी के प्रति असीम श्रद्धा एवं विश्वास को दर्शाता है। प्रथम चरण में अपने गुरुदेव के अतिरिक्त भगवान श्री गणेश, वीणापाणि माँ सरस्वती, भगवान गौरी शंकर तथा भगवान श्री सीताराम की वंदना में बहुत ही सरस सोरठा का सृजन किया है।
एक वानगी देखिए
वंदउँ बारम्बार गुरु पद पारस मनहिं मन।
करहिं जगत उजियार हे सत साधक सहज बढ़ि।।
वंदउँ बारम्बार श्री गणेश विघ्नेश अब।
करहिँ नमन स्वीकार आदि पूज्य प्रथमेश पुनि।।
इस खंडकाव्य में महावीर हनुमान के जन्म प्रसंग से लेकर भगवान श्री राम के राज्याभिषेक तक का वर्णन बहुत ही रोचक एवं भावपूर्ण है।
हे हनुमत वीर बलवंता।दानव दलन संत रिपुहंता।।
मंगल मूर्ति महा बलवाना।संकट मोचन कृपानिधाना।।
इसके मध्य में प्रसंग बस भगवान श्री राम के जन्म एवं उनके द्वारा की गई पारलौकिक लीलाओं के वर्णन के साथ-साथ रावण की राजधानी लंका का भी बड़ा मनोहरी चित्रण बन पड़ा है।
भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक का वर्णन करते हुए रचनाकार लिखते हैं कि-
रामचंद्र बैठहिं सिंहासन।अति उत्तम उत्सव आयोजन।।
सियाराम की शोभा न्यारी।सुंदर सुखद सुमंगलकारी।।
मैं यह निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि विजय प्रताप शाही द्वारा रचित “श्री हनुमंत प्रकाश” खंडकाव्य प्रत्येक सनातन धर्मी को प्रातः नित्य पाठ करने के लिए सर्वथा उपयुक्त है। इसके पठन पाठन से अंजनी पुत्र हनुमान जी की अवश्य कृपा प्राप्त होगी। ऐसी में कामना करता हूँ, साथ ही एक बार पुनः इस खंडकाव्य के रचनाकार को हार्दिक बधाई देने के साथ ही आशान्वित हूँ कि भविष्य में भी इसी प्रकार के आध्यात्मिक सृजन वे करते रहेंगे और हम पाठकों को उनके सृजन को पढ़कर ज्ञान अर्जन होता रहेगा।
समीक्षक- सुरेंद्र शर्मा सागर
श्योपुर मध्य प्रदेश