गंगा मैया – मेरी माँ की याद में

*गंगा मैया – मेरी माँ की याद में*

गंगा मैया, को ही मैंने अपनी माँ माना,

छोटी थी जब माँ का आँचल मुझसे हारा।

बचपन की उस सूनी दुपहरी में,

तेरी लहरों में माँ का साया मुझे प्यारा।

 

जब जब तेरे तट पर आई,

तेरे स्पर्श में ममता का आँचल पाया।

आँसू बहते, तूने थाम लिया,

तेरे जल ने हर दर्द को शीतल बना दिया।

 

अमृत सा तेरा पावन जल पीकर,

मैंने खुद को माँ की गोदी में पाया।

तेरी लहरों की मीठी बोली में,

माँ की लोरी जैसा सुख समाया।

 

जब कोई नहीं था, तू थी पास,

तेरे किनारे बैठ, मैंने जिया हर एहसास।

माँ की छवि जब आँखों से ओझल हुई,

तेरे प्रवाह में फिर से वह उजली हुई।

 

तू बहती रही, मैं चलता रहा,

तेरे साथ माँ की यादें पलती रहीं।

अब भी जब तुझसे मिलने आता हूँ,

माँ के गले लगने जैसा लगता है।

 

गंगा मैया, तू बस नदी नहीं,

बिछड़ी माँ का स्वरूप है कहीं।

मुझे बस एक तसल्ली रही सदा,

कि माँ कहीं गई नहीं सदा साथ बह रही।

 

नेहा वार्ष्णेय

दुर्ग (छत्तीसगढ़)