2000 ₹ की मशीन करेगी प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान

 

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय के बीटेक के विद्यार्थियों ने तैयार की फिलामेंट मेकिंग मशीन।
प्लास्टिक की बोतलों से बनाएगी फिलामेंट, थ्री डी प्रिंटिंग और प्लास्टिक के रीयूज में साबित होगी कारगर।
कुलपति प्रोफेसर दिनेश कुमार ने दी बधाई, कहा स्वरोजगार में कारगर सिद्ध होगी यह मशीन।

पलवल : प्लास्टिक प्रदूषण पूरी दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। प्लास्टिक कचरे के ढेर दिनोंदिन बड़े होते जा रहे हैं। श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय के बीटेक के विद्यार्थियों ने प्लास्टिक की बोतलों से एफडीएम (फ्यूज्ड डिपोजिशन मॉडलिंग) 3डी प्रिंटर के लिए फिलामेंट तैयार करने की मशीन बनाई है। इससे प्लास्टिक को आसानी से फिलामेंट में तब्दील किया जा सकेगा। इस मशीन पर महज दो हजार रुपए की लागत आई है, जबकि प्लास्टिक पैलेट से फिलामेंट तैयार करने की मशीन बाजार में लाखों रुपए में आती है। विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई मशीन प्लास्टिक बोतल को देखते ही देखते फिलामेंट में तब्दील करने में सक्षम है।
श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दिनेश कुमार ने इसके लिए बीटेक मेकेनिकल एंड स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग के विद्यार्थियों को बधाई दी और भविष्य में प्लास्टिक निस्तारण पर और अधिक शोध करने का आह्वान किया। कुलपति प्रोफेसर दिनेश कुमार ने कहा कि यह मशीन भविष्य में बहुत से युवाओं के लिए स्वरोजगार का माध्यम भी बन सकती है।
विद्यार्थियों ने अपने परिवेश में बढ़ते प्लास्टिक बोतलों के चलन और ढेरों को देखते हुए इस परियोजना पर काम किया है। छात्रों ने मुख्य रूप से पीईटी (पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट) बोतलों पर ध्यान केंद्रित किया। यह सामान्यतः कोल्ड ड्रिंक्स और पानी की बोतलों में उपयोग होती हैं। इस परियोजना में शामिल अजय साहू, रिया, पूजा, किरण, भावना, साक्षी और आरती ने प्लास्टिक की बोतलों का संग्रहण किया और उससे फिलामेंट बनाने की प्रक्रिया की। इसके लिए विद्यार्थियों ने एक विशेष फिलामेंट निर्माण मशीन स्वयं डिजाइन और विकसित की है, जो अपशिष्ट प्लास्टिक को फ्यूज्ड डिपोजिशन मॉडलिंग 3डी प्रिंटर के लिए उपयुक्त फिलामेंट में परिवर्तित करती है। इस मशीन में थ्रेडिंग यूनिट, हीटिंग और एक्सट्रूज़न सिस्टम तथा नियंत्रित कूलिंग व्यवस्था सम्मिलित है, जिससे फिलामेंट की गुणवत्ता और मोटाई में एकरूपता बनी रहती है। यह मशीन देखते ही देखते प्लास्टिक की बोतल को निश्चित मोटाई की पट्टी में तब्दील कर उसका गोला बना देती है। बाद में उसे थ्री डी प्रिंटिंग या प्लास्टिक की कोई आइटम बनाने में रीयूज किया जा सकेगा।
परियोजना समन्वयक डॉ. दिनेश यादव ने बताया कि इस परियोजना के अंतर्गत छात्रों द्वारा विकसित की गई फिलामेंट निर्माण प्रक्रिया और मशीन न केवल 3डी प्रिंटिंग की लागत को कम करेगी, बल्कि प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन में भी सहायक सिद्ध होगी। इस परियोजना का उद्देश्य प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन और थ्रीडी प्रिंटिंग सामग्री की उच्च लागत को कम करना।
प्लास्टिक फिलामेंट मशीन का प्रोजेक्ट दिखाते विद्यार्थी।