जीवन में बचपन से ही संस्कार देने की जरूरत- पं घनश्याम किशोर मिश्र

कुदरहा, बस्ती। कुदरहा विकास क्षेत्र के  छरदही गांव में चल रही  नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन व्यास पीठ से अवध धाम से पधारे आचार्य पं घनश्याम किशोर मिश्र ने सती चरित्र के प्रसंग को विस्तार से वर्णन करते  हुए कहा कि भगवान शिव की बात न मानने पर सती पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा था।भागवत कथा में उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा सुनाते हुए बाल व्यास जी ने समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है। भक्त ध्रुव ने तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न किया।और कहा कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है।व्यक्ति अपने जीवन में जिस प्रकार के कर्म करता है उसी के अनुरूप उसे मृत्यु मिलती है। भगवान ध्रुव के सत्यकर्मो की चर्चा करते हुए कहा कि ध्रुव की साधना,उनके सत्कर्म तथा ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा के परिणाम स्वरूप ही उन्हें वैकुंठ लोक प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि संसार में जब-जब पाप बढ़ता है, भगवान धरती पर किसी न किसी रूप में अवतरित होते हैं। कलयुग में भी मनुष्य सतयुग में भगवान कृष्ण के सिखाए मार्ग का अनुशरण करे तो मनुष्य का जीवन सफल हो सकता है। पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो तो, इसके लिए श्रीमद्भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया है।
       कथा में मुख्य यजमान राजेंद्र प्रसाद दुबे, आचार्य आनंद मिश्रा, राजू दुबे, नरेंद्र प्रसाद, धर्मेद्र दुबे, रविद्र, गुड्डू, शिखर, विनय, अतुल दुबे, राम प्रकट उपाध्याय, इंद्रजीत दुबे, पप्पू दुबे, पंडित हरिराम, बालकदास, राम भरत दुबे, सूरज सहित तमाम लोग मौजूद रहे।