अनुराग लक्ष्य, 27 अप्रैल
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता ।
बस्ती की साहित्यिक गतिविधियों में अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के लिए जाने जाने वाली कवियत्री अर्चना श्रीवास्तव ने हमेशा समसामयिक विषयों और घटनाओं पर हमेशा पाठकों और श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया है। इसी लिए तो अभी हालिया घटी घटना पहलगाम पर अपनी प्रतिक्रिया अपनी रचना के माध्यम से करने में सफल दिखाई दे रही हैं। आज उन्हीं की एक यादगार रचना आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।
कश्मीर की घाटी कलंकित फिर हुई है।
रक्त रंजित यह धरा फिर से हुई है।
ऊरी कठुआ पुलवामा अब पहलगाम थर्राया है।
नदियाँ लाल वहाँ की फिर से खूं से हुई है।
निकले थे नवयुगल सफर में छूटा था घर उनका।
पता नहीं था उनको यह आखिरी सफर है उनका।
स्वर्ग से प्यारी धरती पर ही टूटा था दम उनका।
हत्यारों तुम हमें बताओ क्या कसूर था उनका।
जाति धर्म पर गोली मारो यह तो युद्ध नहीं है।
ऐसे काम वही करता है जिसका खून ही शुद्ध नहीं है।
कब तक मरते रहें निरीह साहब हमको बतलाओ ना।
ठोस फैसला लेकर अब तो आर-पार निपटाओ ना।
हमने ही है तुम्हें बनाया हम ही तुम्हें मिटाएंगे।
इस दुनिया के मानचित्र से तेरा नाम हटाएंगे।
बहुत हो गया अब ना सहेंगे तेरी काली करतूतों को।
खून से लथपथ इन लाशों पर तेरे ही शीश चढ़ाएंगे।
टेढ़ी अगर नजर जो कर दी मेरे हिंदुस्तान ने।
नहीं रहेगा चित्र तुम्हारा दुनिया और जहांन में।
अर्चना श्रीवास्तव , बस्ती उ प्र .