ओ३म्
“आर्यसमाज के शीर्ष विद्वान् रहे प. शिवपूजनसिंह कुशवाहा और उनके लेखकीय कार्यों का संक्षिप्त विवरण”
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पं. शिवपूजन सिंह कुशवाहा जी आर्यसमाज के महान् विद्वानों में से एक थे। उन्होंने आर्यसमाज से सम्बन्धित बड़ी संख्या में छोटे व बड़े ग्रन्थों को लिखा है। उनके ग्रन्थ उनके जीवन काल में प्रकाशित होते रहे। उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी पुस्तकों की ग्रन्थमाला को तीन या चार जिल्दों में प्रकाशित करने का उद्यम आर्यसमाज के विख्यात प्रकाशक ऋषिभक्त पं. प्रभाकरदेव आर्य जी ने आरम्भ किया था। वह ग्रन्थावली के दो खण्ड ही प्रकाशित कर पाये थे कि लगभग 70 वर्ष की आयु में उनकी आक्समिक मृत्यु हो गयी। तीसरा खण्ड तैयार हो रहा था जो कि उनकी मृत्यु के कारण अब तक भी प्रकाशित नहीं हो सका। चार वेदों की मन्त्र संहिताओं सहित पं. हरिशरण सिद्धान्तालंकार जी का चार वेदों का सम्पूर्ण हिन्दी भाष्य उन्होंने प्रकाशित किया था। इसके अतिरिक्त भी कई सौ महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन उन्होंने लगभग तीन दशकों की अल्पावधि में किया। उनकी असमय मृत्यु के कारण अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन रूक गया। यदि उनकी मृत्यु न हुई होती तो कुशवाह ग्रन्थावलि के अन्य एक या दो खण्ड भी अब तक पाठकों को सुलभ हो जाते। हम कुशवाह-ग्रन्थावली का सम्पूर्ण रूप में प्रकाशन न हो सकने को आर्यसमाज की एक बहुत बड़ी समझते हैं। आज हम यहां पं. शिवपूजन सिंह कुशवाहा जी का ‘आर्य-लेखक-कोश’ में डा. भवानीलाल भारतीय जी द्वारा दिया गया परिचय एवं उनके ग्रन्थों की सूची को आर्यसमाज के स्वाध्यायशील पाठकों के लिये प्रस्तुत कर रहे हैं।
लेखनी के धनी, सिद्धान्तमर्मज्ञ तथा प्रतिपक्ष का खण्डन करने में तत्पर श्री शिवपूजनसिंह कुशवाहा का जन्म 1 जून 1924 को बिहार प्रान्त के सारण जिलान्तर्गत ‘गौरा’ ग्राम में हुआ। इनकी व्यवस्थित पढ़ाई तो मिडिल पर्यन्त ही हुई परन्तु कालान्तर में आपने प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में मैट्रिक से लेकर एम.ए. (संस्कृत) तक की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं। हिन्दी विद्यापीठ देवघर (बिहार) की साहित्यालंकार तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन की विशारद परीक्षाएं भी उत्तीर्ण कीं। 1983 में आपने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से साहित्य-शास्त्री की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। 1941 से 1944 तक कुशवाहाजी विरक्त अवस्था में रहे। 1 नवम्बर 1944 को वे प्रसिद्ध दानवीर श्री धनीराम भल्ला के सम्पर्क में आये तथा उनके कार्यालय में 8 वर्ष तक कार्य किया। पुनः कानपुर की प्रसिद्ध जूतों की कम्पनी फ्लैक्स के कार्यालय में लिपिक के पद पर कार्य किया। श्री कुशवाहा ने अपने लेखकीय जीवन में आर्यससमाज एवं वैदिक धर्म के सिद्धान्तों पर सैकड़ों लेख लिखे तथा प्रतिपक्षियों के आक्षेपात्मक विचारों का सप्रमाण उत्तर दिया।
पं. शिवपूजनसिंह कुशवाहा जी के लेखकीय कार्यों का विवरणः-
1- ऋग्वेद के दशम मण्डल पर पाश्चात्य विद्वानों का कुठाराघात (2007 विक्रमी)
2- सामवेद का स्वरूप (2012 विक्रमी)
3- अथर्ववेद की प्राचीनता (2006 विक्रमी)
4- महर्षि दयानन्द कृत वेदभाष्यानुशीलन (2007 विक्रमी)
5- गायत्री महात्म्य (2014 विक्रमी)
6- वैदिक शासन पद्धति (2010 विक्रमी)
7- क्या वेदों में मांसाहार का विधान है?
8- नीर क्षीर विवेक (2018 विक्रमी)
9- वैदिक सिद्धान्तमार्तण्ड (2020 विक्रमी)
10- आर्यसमाज में मूर्तिपूजाध्वान्तनिवारण (2007 विक्रमी)
11- शिवलिंग पूजा पर्यालोचन (1960 ई.)
12- अष्टादश पुराण परिशीलन (सन् 1961)
13- नारद पुराण का आलोचनात्मक अध्ययन (2028 विक्रमी)
14- मार्कण्डेय पुराण: एक समीक्षा (2029 विक्रमी)
15- वामनावतार की कल्पना (2007 विक्रमी)
16- सत्यार्थ प्रकाश भाष्य (तृतीय समुल्लास) (सन् 1955)
इसके पश्चात हम पुस्तकों के प्रकाशन वर्ष को छोड़ रहे हैं। जो पाठक वर्ष देखना चाहें वह डा. भवानीलाल भारतीय जी की पुस्तक में कृपया देखने की कृपा करें।
17- महर्षि दयानन्द की दृष्टि में ‘यज्ञ’
18- आर्यसमाज के द्वितीय नियम की व्याख्या
19- भारतीय इतिहास और वेद
20- वैदिक काल में तोप और बन्दूक
21- पाश्चात्य विद्वानों की दृष्टि में वेद ईश्वरीय ज्ञान
22- वैदिक देवता रहस्य
23- ‘वैदिक एज’ पर समीक्षात्मक दृष्टि
24- उपनिषदों की उत्कृष्टता
25- भारतीय इतिहास की रूपरेखा पर एक समीक्षात्मक दृष्टि
26- बाइबिल में वर्णित बर्बरता तथा अश्लीलता का दिग्दर्शन
27- ईसाई दम्भ का प्रत्युत्तर
28- ‘आर्य दयानन्द सरस्वती और मसीही मत’ पर्यालोचन
29- पाश्चात्यों की दृष्टि में इस्लामी-मत प्रवर्तक
30- इस्लाम के स्वर्ग और नरक पर महर्षि दयानन्द की आलोचना का प्रभाव
31- आर्यों का आदि जन्म स्थान निर्णय
32- महर्षि दयानन्द तथा आर्यसमाज को समझने में पौराणिकों का भ्रम
33- क्या वेद में मृतक श्राद्ध है?
34- श्री सत्य साईं बाबा का कच्चा चिट्ठा
35- कुशवाहा क्षत्रियोत्पत्ति मीमांसा
36- राठोर कुलोत्पत्ति मीमांसा
37- जादू-विद्या रहस्य
38- शतपथ ब्राह्मण का भ्रष्ट भाष्य
39- इन्द्र अहल्या उपाख्यान का वास्तविक स्वरूप और महर्षि दयानन्द
40- आचार्य महीधर और स्वामी दयानन्द के यजुर्वेद माध्यन्दिन भाष्य का तुलनात्मक अध्ययन का आलोचनात्मक अध्ययन
41- गायत्री मीमांसा
42- सती दाह – एक लोमहर्षक प्रथा
43- हनुमान का वास्तविक रूप
44- मनोवैज्ञानिक जादू विद्या के चमत्कार
45- पद्म पुराण का आलोचनात्मक अध्ययन
अपने कानपुर निवासकाल में कुशवाहा जी ने दयानन्द शोध संस्थान की स्थापना की तथा उसके अन्तर्गत रुद्र-ग्रन्थमाला से उनके कई ग्रन्थ छपे। जयदेव ब्रदर्स बड़ौदा ने भी उनके कई ग्रन्थ प्रकाशित किये।
हिण्डोनसिटी-राजस्थान से श्री प्रभाकरदेव आर्य जी द्वारा प्रकाशित ‘कुशवाह-ग्रन्थावली’ के भाग 2 में इस ग्रन्थावली के सम्पादक एवं प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् पं. ज्वलन्तकुमार शास्त्री जी ने कुशवाह जी पर निम्न वाक्य लिखे हैं।
शीर्षक कुशवाहाजी का देवयज्ञ
‘विद्वांसो हि देवाः’ ब्राह्मण ग्रन्थों में ऋषियों-मुनियों का यह वचन है। कुशवाहाजी ने अपनी पुस्तकें सुप्रतिष्ठित आर्य विद्वानों को समर्पित की हैं। उनकी पुस्तकों के सम्पादकों में आर्य विद्वान् रहे हैं। उनकी पस्तकों की भूमिका, प्राक्कथन और उस पर सम्मलियां लिखने वाले वैदिक आर्य विद्वानों की उल्लेखनीय नामावलि से ही कुशवाहाजी की आर्य विद्वानों के प्रति समादर और पूजा-भावना के साथ-साथ उनकी विनयशीलता भी परिलक्षित होती है। उन्होंने अपनी एक भी पुस्तक अपने पारिवारिक जन को समर्पित नहीं की। असत्य-मतों के खण्डन में लौह लेखनी के धनी इस विद्वान् की सरलता-साधुता और विनम्रता के वे सभी विपश्चित महानुभाव कायल रहे हैं जो उनके समकालीन थे या वर्तमान में हैं। एक साधु और सद्ग्रहस्थ के रूप में रहते हुए उन्होंने काम, क्रोध और लोभ तीनों को जीत लिया था।
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभः तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।
गीताः 16/21
बहुत थोड़े रुपयों में क्लर्की की नौकरी से साधारण जीवन व्यतीत करते हुए भी उन्होंने 7500 साढ़े सात हजार पुस्तकें संगृहीत कीं। अस्तु।
हिण्डोन सिटी से कीर्तिशेष प्रभाकरदेव आर्य जी द्वारा कुशवाह-ग्रन्थावली के तीसरे भाग में जिन 12 ग्रन्थों एवं परिशिष्टों का प्रकाशन होना था उसका विवरण निम्न हैः
1- गायत्री मीमांसा
2- सत्यार्थप्रकाश भाष्य (तृतीय समुल्लास)
3- ‘उपनयन’ पर एक दृष्टि
4- गोत्र-प्रवर-वेद-शाखा-सूत्रादि का विवरण
5- परस्पर खान-पान
6- ‘तथागत’ पर मांसाहार का मिथ्या दोषारोपण
7- हल-कर्षण
8- विधवा विवाह-विवेचन
9- ‘सती-दाह’ एक लोमहर्षक प्रथा
10- गणित के जादू
11- इस्लाम के स्वर्ग-नरक पर महर्षि दयानन्द की आलोचना का प्रभाव
12- श्री सत्यसाईं बाबा का कच्चा चिट्ठा
भाग 3 के परिशिष्ट
परिशिष्ट-1
(क) सम्मान्य कुशवाहा जी की संक्षिप्त जीवनी
(ख) कुशवाहा जी के सम्पर्कीय आर्य मनीषियों के संस्मरण
परिशिष्ट-2 संशोधन, समीक्षाएं और परिष्कार
परिशिष्ट-3 सन्दर्भ ग्रन्थ-सूची
(कुशवाह-ग्रन्थवली खण्ड-1 से खण्ड-3 तक में समुद्धृत ग्रन्थों, पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं की सूची)
श्रद्धेय श्री प्रभाकरदेव आर्य जी की मृत्यु के बाद से ‘हितकारी प्रकाशन समिति, हिण्डोनसिटी’ का प्रकाशन कार्य सर्वथा बन्द है, ऐसा हम अनुभव करते हैं। हम अनुभव करते हैं कि कुशवाह-ग्रन्थावली की शेष सामग्री का तीसरा भाग व यदि बचे तो चैथा भाग भी प्रकाश में आना चाहिये। इस कार्य के लिये ग्रन्थावली के सम्पादक महोदय श्री प्रभाकरदेव आर्य जी के परिवार व डा. विवेक आर्य जी से मिलकर योजना बना सकते हैं। यदि प्रकाशन सम्भव न हो तो आर्यसमाज के प्रमुख प्रकाशक से तीसरे भाग के प्रकाशन के लिये निवेदन किया जा सकता है। इस प्रकाशन कार्य में कुशवाह जी के साहित्य के प्रशंसक बन्धु जो देश व विदेश में हैं, आर्थिक सहयोग देकर इस कार्य को सम्भव बना सकते हैं। लेख को यहां विराम देते हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य