ओ३म्
-वैदिक साधन आश्रम, तपोवन में 7 दिवसीय यजुर्वेद पारायण एवं गायत्री महायज्ञ संपन्न-
“परमात्मा ने हमारे शरीर में हाथ दूसरों की सेवा व रक्षा करने तथा दान व पुण्य के कार्यं करने के लिए दिए हैं: आचार्या डा. अन्नपूर्णा”
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वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून की पर्वतीय इकाई तपोभूमि में रविवार दिनांक 9 मार्च, 2025 को 3 मार्च से 9 मई 2025 तक चले सात दिवसीय यजुर्वेद पारायण एवं गायत्री महायज्ञ की पूर्णाहुति सम्पन्न हुई। यह वृहद् यज्ञ वेदविदुषी डा. अन्नपूर्णा जी के ब्रह्मत्व में सम्पन्न हुआ। यज्ञ में मंत्रपाठ द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल, देहरादून की 4 कन्याओं ने किया। यज्ञ के संचालन का कार्य प्रसिद्ध आर्य विद्वान आचार्य शैलेशमुनि सत्यार्थी जी, ज्वालापुर-हरिद्वार ने बहुत ही उत्तमता से किया। यह यज्ञ आश्रम की वनो से आच्छादित पर्वतीय इकाई तपोभूमि में विद्यमान भव्य एवं विशाल यज्ञशाला की तीन यज्ञ वेदियों में सम्पन्न हुआ। यज्ञ में देश के अनेक स्थानों से आये बड़ी संख्या में याज्ञिकों ने यजुर्वेद पारायण यज्ञ सम्पन्न किया।
यज्ञ के अनन्तर एवं यज्ञ की पूर्णाहुति के पश्चात डा. अन्नपूर्णा जी का याज्ञिकों एवं स्थानीय व्यक्तियों के सम्मुख सम्बोधन हुआ। उन्होंने कहा कि जो मनुष्य यजमान बनते हैं वह सौभाग्यशाली होते हैं। उन्होंने यज्ञ कराते हुए सब यजमानों सहित उपस्थित श्रोताओं एवं देशवासियों के कल्याण की कामना की। उन्होंने कहा कि परमात्मा हर दृष्टि से पूर्ण है। हमें भी परमात्मा की ही तरह पूर्णता की ओर बढ़ना चाहिये। आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी ने कहा कि जो मनुष्य यज्ञादि अच्छे कार्यों को करता है उन्हें मृत्यु के बाद पुनर्जन्म भी मनुष्य योनि में प्राप्त होता है एवं परजन्म में सुखों की प्राप्ति भी होती है। उन्होंने परमात्मा से प्रार्थना करते हुए कहा कि हमें असत्य से हटाकर सत्य की ओर ले चलो। अन्धकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमृत वा आनन्द की ओर ले चलो।
आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी ने बताया कि वेद मनुष्यों को ऊपर उठने की प्रेरणा करता है। आचार्या जी ने सभी श्रोताओं को आगे बढ़ने की प्ररेणा भी की। उन्होंने कहा कि मनुष्यों को विशेष कर्मों को करना चाहिये तभी हम ऊपर उठ सकते हैं। प्रभु ने हमें हमारा यह मानव शरीर दिया है। हमारे शरीर में हाथ दूसरों की सेवा व रक्षा करने के लिए मिले हैं। हमें अपने शरीर से दान व पुण्य के कार्यों को करना चाहिये तथा हम ऊपर उठ सकेंगे। आचार्या जी ने आगे कहा कि संसार में अज्ञान व अन्धविशास भरे पड़े हैं। यदि ऐसा न होता तो संसार में वेदविरुद्ध कार्य न हुआ करते। उन्होंने कहा कि गलत कामों को करने से हमारा वर्तमान जीवन एवं परजन्म दोनों बिगड़ते हैं। आचार्या जी ने यह भी कहा कि देश की जितनी भी नदियां हैं उनमें स्नान करने से किसी व्यक्ति के पाप कदापि नहीं धुलते। उन्होंने कहा कि वेद बताते हैं कि एक ईश्वर की अनेक प्रकार से व अनेक नाम व विशेषणों से स्तुति की जाती है। आचार्या जी ने कहा कि ब्रह्माण्ड में एक ईश्वर की ही सत्ता है। उसके समान व अनुरूप कोई अन्य चेतन सत्ता वा अन्य ईश्वर नहीं है। आचार्या जी ने कहा देश के सभी स्कूलों व कालेजों में वैदिक शिक्षा का शिक्षण होना चाहिये। हमारे गुरुकुलों में अष्टाध्यायी-महाभाष्य व्याकरण एवं वैदिक साहित्य की जो शिक्षा दी जाती है वह वैदिक शिक्षा होती है। उन्होंने कहा कि वैदिक ज्ञान के बिना कभी किसी मनुष्य का सत्य अर्थों में उत्थान नहीं होगा। उसको अभ्युदय एवं निःश्रेयस की प्राप्ति नहीं होगी। आचार्या जी ने यह भी कहा कि राम, कृष्ण एवं शिव सभी एक सर्वव्यापक एवं सच्चिदानन्दस्वरूप ईश्वर के भक्त थे। आत्मा के भीतर ही परमात्मा मिलता है। आचार्या जी ने कहा कि जब हमारे सभी युवा एवं युवतियां विवाह करेंगे एवं उचित संख्या में योग्य व संस्कारवान् सन्तानों को जन्म देंगे तभी हमारे धर्म एवं संस्कृति की रक्षा हो सकती है। आचार्या जी ने कहा कि भारत तभी महान् बनेगा जब हमारे बच्चे व युवा पीढ़ी वैदिक शिक्षा व ज्ञान से युक्त होगी। उन्होंने कहा कि कर्मों की भिन्नता के कारण संसार में विचित्रता देखी जाती है। आचार्या जी ने कहा कि आज देश के जन जन को वैदिक ज्ञान की आवश्यकता है। परमात्मा पापियों को दण्ड देता है। परमात्मा के इस नियम को कोई मनुष्य बदल नहीं सकता। अपने सम्बोधन को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि हम प्रभु और कर्मफलों पर विश्वास करें और अपने जीवन को सफल करें।
वैदिक साधन आश्रम तपोवन के यशस्वी मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने अपने सम्बोधन में राष्ट्र की रक्षा के साधनों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि वैदिक धर्मी सनातनी सभी बन्धुओं को विवाह की उचित आयु में अवश्य विवाह करना चाहिये एवं उचित संख्या में संस्कारवान् व देशभक्त सन्तानों को जन्म देना चाहिये जिससे हमारी प्राचीनतम धर्म व संस्कृति एवं वेदों की रक्षा हो सके। विद्वान मंत्री जी ने कहा कि सभी सनातनी व आर्य परिवारों को अपनी सन्तानों को वेदों के संस्कार देने चाहियें और ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये कि वह पश्चिमी जीवन शैली की बुरी बातों से प्रभावित होकर अपने जीवन को खराब न करें। श्री शर्मा जी ने आचार्या अन्नपूर्णा जी के कार्यों की प्रशंसा भी की। शर्मा जी ने आगामी 1 अप्रैल, 2025 से आश्रम परिसर में आरम्भ गुरुकुल के विषय में विस्तार से जानकारी दी और आश्रम प्रेमियों को आश्रम से आर्थिक सहयोग की अपील की।
यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी ने भी श्रोताओं को सम्बोधित किया। उन्होंने गायत्री मंत्र बोलकर अपना उद्बोधन आरम्भ किया और बताया कि उन्होंने साढ़े तीन वर्ष पूर्व स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी से संन्यास आश्रम की दीक्षा ली थी। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी को 29 मई, 2024 को पक्षाघात हुआ था। वह काफी कमजोर हो गये हैं। सहारे से चलते हैं। उनकी वय 98 वर्ष है। हम, मनमोहन ने, उनके तपोवन आश्रम, गुरुकुल पौंधा-देहरादून, वैदिक आश्रम, धौलास-देहरादून आदि अनेक स्थानों पर विगत लगभग 25 वर्षों में अनेक बार व्याख्यानों को सुना है और उन्हें लेखबद्ध कर फेसबुक, ईमेल एवं व्हटशप के माध्यम से प्रसारित भी किया है। स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि सम्मान हृदय से किया जाता है। उन्होंने कहा कि यद्यपि मैं स्वस्थ, प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हूं परन्तु देश व समाज की भविष्य की स्थिति पर विचार कर चिन्तित हो जाता हूं। अपने चिन्तन को उन्होंने एक स्वरचित गीत के माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि सनातनी व वैदिक धर्मी परिवारों में सन्तानों के न होने वा उनकी कमी के कारण परिवारों में सूनापन अनुभव कर दुःख होता है। स्वामी जी ने भ्रूणहत्या को महापाप बताया। उन्होंने छोटे छोटे बच्चों द्वारा मोबाइल के प्रयोग का उल्लेख किया और उसके दुष्परिणामों को बताकर अपनी चिन्ता व्यक्त की। स्वामी जी ने आर्य व सनातनी माता-पिताओं को अपनी सन्तानों को अच्छे संस्कार देने का आह्वान किया। स्वामी जी ने कहा कि देश के नागरिकों को देशभक्त बनाकर ही देश की रक्षा की जा सकती है। स्वामी योगेश्वरानन्द जी ने संगठन के महत्व पर प्रकाश डाला और सबको आर्यसमाज व इसकी समान विचारधारा वाले संगठनों से जुड़कर सामाजिक कार्य करने की प्रेरणा की।
98 वर्षीय स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी अस्वस्थ होने पर भी आज कुछ समय के लिये आयोजन में सम्मिलित हुए। स्वामी जी सहारे से कुछ दूर चल सकते हैं। स्वामी जी सुनते भी कम हैं। इन कारणों से स्वामी जी की सामाजिक कार्यों में सक्रियता इन दिनों कम हो गयी है अथवा समाप्त प्रायः है। स्वामीजी ने अपने सम्बोधन में बताया कि उन्हें 29 मई को अस्वस्थता हुई। तब से वह निर्बल व कमजोर हैं। वह अधिक बोल नहीं पाये और दो तीन पंक्तियां बोल कर ही उन्होंने अपने वक्तव्य को विराम दे दिया।
कार्यक्रम का संचालन आर्य विद्वान् श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने बहुत ही योग्यतापूर्वक एवं उत्तमता से किया। बलि क्या होती है, इसे सत्यार्थी जी ने उदाहरण देकर बताया। धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए उन्होंने सभी आर्यों को अपने अपने परिवारों को बढ़ाने की प्रेरणा की। उन्होंने कहा कि कम सन्तानों व सन्तान उत्पन्न न करने के भविष्य में अनेकों दुष्परिणाम होंगे। उन्होंने माता-पिताओं को कहा कि अपनी सन्तानों को विवाह की आयु हो जाने पर उनका विवाह कर दिया करें। इससे निजी परिवारों सहित समाज और देश को भी लाभ होगा।
कार्यक्रम में पधारे ऋषिभक्त महात्मा दयाशंकर जी ने अपने सम्बोधन में तीन दुःखों आधिभौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक की चर्चा की। आचार्य दयाशंकर जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन की घटनाओं को भी स्मरण किया। उन्होंने बताया कि वन में भरत जी से राम चन्द्र जी ने कहा था कि यदि वह 14 वर्ष पूर्ण किये बिना वन से अयोध्या लौटेंगे तो भविष्य में कोई माता-पिता अपनी सन्तानों से यह अपेक्षा करनी छोड़ देंगे कि उनकी सन्तानें उनके वचनों को पूरा करेंगी। आचार्य जी ने कावड़ यात्रा की चर्चा की और कहा कि इससे हमारी जाति के लोगों का धन व समय अनुत्पादक काम में लगता है तथा कावड़ के निर्माण एवं इस व्यवसाय करने वाले लोगों के पास हमारा अरबों रूपया जाता है। वेदों या हमारे प्रामाणिक धर्म शास्त्रों में कहीं कावड़ वा कावड़ यात्रा का उल्लेख नहीं है। आचार्य दयाशंकर जी ने कहा कि जिन रंगों का प्रयोग होली खेलने के लिए किया जाता है, उससे शरीर व स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है। आचार्य जी ने परिवार बढ़ाने व धर्म एवं संस्कृति की रक्षा के कार्यों को करने की प्रेरणा की।
यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद आयोजन में पधारी बहिन श्रीमती उषा नेगी जी, बाल आयोग की अध्यक्षा एवं पूर्व राज्यमंत्री को माला पहनाकर एवं ओ३म् पट्ट देकर सम्मानित किया गया। प्रसिद्ध भजन गायिका बहिन श्रीमती मीनाक्षी पंवार जी ने एक मधुर भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘मैं जीव हूं तुम जगदीश्वर हो इतना तो भेद जरुरी है।’ इस भजन को सभी श्रोताओं ने पसन्द किया। बहिन जी अपने पति श्री दिलबाग सिंह जी के साथ आज यजमान भी बनी थीं। श्री सत्यपाल आर्य जी ने एक भजन ‘मुझे तुने दाता बहुत कुछ दिया है, तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया है’ प्रस्तुत किया। आश्रम के मंत्री जी ने सूचना दी की आश्रम का आगामी ग्रीष्मोत्सव 14 से 18 मई, 2025 को सम्पन्न होगा जिसमें सभी धर्म प्रेमी बन्धु आमंत्रित हैं। यज्ञ में एक सप्ताह तक भाग लेने वाले सभी याज्ञिकों के लिए आश्रम की वनों से आच्छादित तपोभूमि में निवास एवं भोजन की व्यवस्था की गई थी। आज भी सभी श्रोताओं के लिए नास्ते एवं यज्ञ की समापित के बाद दिन के भोजन की सुन्दर व्यवस्था आश्रम की ओर से की गई थी। हमें भी आज का कार्यक्रम बहुत अच्छा लगा। आश्रम के अधिकारियों के इस यज्ञ के आयोजन के लिए हार्दिक धन्यवाद। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य