केवल ऋतु परिवर्तन का नहीं बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में नवचेतना और रचनात्मकता का प्रतीक है। हिंदू धर्म में बसंत पंचमी का खास महत्व है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से भी जाता है। बसंत पंचमी हर वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष के पंचमी तिथि को मनाया जाता है। बसंत पंचमी विद्या, बुद्धि, ज्ञान, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती के प्रकाट्य का पर्व है।
सेक्टर १२ शंकराचार्य मार्ग स्थित शिविरमें शैव संप्रदाय के श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के जगद्गुरू, सूर्याचार्य कृष्णदेवनंद गिरी महराज ने कहा कि धर्म, अध्यतम, सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, कला-साहित्य सहित सभी क्षेत्रों में चिन्तन और साधना से मानव ने जो स्थान हासिल किया है, उसके लिए ईश्वर को आभार व्यक्त करने का आयोजन है सरस्वती पूजा। इस दिन देवी सरस्वती, कामदेव और विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। यह भारत, बांगलादेश, नेपाल और कई अन्य राष्ट्रों में बड़े उल्लास के साथ मनाई जाती है। पुराणों -शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। उन्होंने बताया कि बसंत पंचमी वह दिन है, जब विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की विधिविधान से पूजा की जाती है। देवी सरस्वती के हाथों में वीणा है। उन्होंने बताया कि वीणा का अर्थ है संतुलन, मनुष्य किसी भी धर्म , पंथ, संप्रदाय का हो, उसका जीवन संतुलित होना चाहिए। जिसके जीवन में संतुलन नहीं मधुर संगीत की झंकार नहीं आ सकती। उन्होंने बताया कि सरस्वती देवी का शुभ्र वस्त्र पवित्रता और सौम्यता का प्रतीक है। शुभ्र रंग संदेश देता है कि हमारा जीवन पवित्र होना चाहिए। उसमें शुचिता होनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि सरस्वती देवी को कही कही हंस पर भी बैठे दिखाया गया है। हंस के बारे में बताया जाता है कि उसके सामने दूध में पानी मिलाकर रख दिया जाय तो वह सिर्फ दूध पी लेता है और पानी को छोड़ देता है । उसी प्रकार से जिसे सत्य और असत्य के भेद का ज्ञान होता है उसे हंस वृत्ति कहा जाता है। उनके हाथ में माला है। माला का तात्पर्य यह है कि वह एक धागे में रहता है। मतलब कि हमें सब को साथ लेकर चलना चाहिए। उन्होंने बताया कि देवी सरस्वती के एक हाथ में ग्रंथ है। ग्रंथ विद्या का सूचक है। जिन ग्रंथों से हमें ज्ञान प्राप्त होता है, उन ग्रंथों से हमारा परिचय होना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि ज्ञान, विद्या, संतुलन, समास्थिति, कला, इन सब विधाओं का देवी सरस्वती के रूप में एक रूपकात्मक विग्रह हमें जीवन में प्राप्त हुआ है। बसंत पंचमी की सार्थकता तभी मानी जाएगी जब हम अपने जीवन में शुद्धता, सुचिता, कलात्मकता, अध्ययन आए। देवी सरस्वती के वास्तविक स्वरूप को समझकर उसका आत्मसात करें।