मुद्दत हुई किसी ने मेरा हाल न पूछा, गुज़रा है किस तरह यह मेरा साल न पूछा,सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,


अनुराग लक्ष्य, 19 दिसंबर
मुम्बई संवाददाता।
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी।
ज़िंदगी जब दौड़ती है तो रगों में बहने वाला खून भी दौड़ता है, और इस दौड़ में कभी कभी ऐसा होता है, कि इंसान अपनी मंज़िल पा लेता है, लेकिन कभी कभी ऐसा भी हो जाता है कि इंसान अधूरे रह का मुसाफिर बनकर रह जाता है। लेकिन शुक्र है मेरे रब का और मेरे चाहने वालों का, जिनकी बेपनाह मुहब्बतें मेरे हिस्से में आईं। और मुंबई जैसी आर्थिक नगरी में आपका महबूब शायर सलीम बस्तवी अज़ीज़ी अपनी तमाम तर खूबियों के साथ आपसे रूबरू है।
1/ कभी ज़माने में ऐसा भी कोई यार मिले,
वफ़ा के नाम पे हर रोज उससे प्यार मिले,
ग़रीब मैं सही मेरा शहर न ग़रीब रहे,
हमारे हाथों को कोई ऐसा कारोबार मिले ।।
2/ मेरा मुकद्दर मेरा है लोगों, उस पर किसी का ज़ोर नहीं
मैं टूट जाऊं, मैं झुक जाऊं इतना तो मैं कमज़ोर नहीं ।
ग़म सारे अपने मैं पीता हूँ, पी लेता हूँ बेबसी ।
3/ चाहत में तेरी अब मैं संवर भी नहीं पाता,
राहों में तेरी अब मैं बिखर भी नहीं पाता ।
इक तू है जो ख्वाबों में चला आता है अब भी
और मैं तेरी राहों से गुज़र भी नहीं पाता ।
4/ ऐ ज़िंदगी यह कैसा सुखनवर बना दिया
तन्हाइयों को मेरा मुकद्दर बना दिया ।
5 / सबकी दुनिया संवार दे मौला,
दिल में खुशियाँ हज़ार दे मौला।
गम के साए न आएं राहों में,
अपनी रहमत से तार दे मौला।।
6 / मुद्दत हुई किसी ने मेरा हाल न पूछा,
गुज़रा है किस तरह यह मेरा साल न पूछा ।
इस दौर ए परेशाँ में भी जो हैं मेरे अपने,
चलती है कैसे तेरी रोटी दाल न पूछा ।।