📍 ओ३म् 📍
🌻 *संस्कार भूमि भारत*🌻
सम्पूर्ण भू -मंडल पर 🍁 परंपराऐं, रीति-रिवाज व लोकाचार 🍁 चलते हैं।केवल आर्यावर्त [ भारत ] ही एक ऐसा देश है जहां पर *संस्कृति एवं संस्कारों की अविरल श्रृंखला* चलती है। भारतीय संस्कृति में *मनुष्य पैदा नहीं होता अपितु बनाया* जाता है। मानव निर्माण शाला में भारतीय ऋषियों ने *सोलह संस्कारों* को क्रमबद्ध किया है जहां क्रमशः मनुष्य *मानव से देवत्व* को प्राप्त करता है। प्रथम तीन संस्कार 🔥 *गर्भाधान+पुंसवन+सीमन्तो नयन*🔥 मां के उदर में ही हो जाते हैं। इसीलिए *माता को प्रथम गुरु* कहा जाता है।
आधुनिकता की चकाचौंध+ भोग विलास को जीवन को लक्ष्य मानकर चल रही आज की युवा पीढ़ी इन संस्कारों से अपरिचित हैं।इसका मुख्य कारण *माता-पिता आचार्य* का अयोग्य होना है। क्योंकि यह एक दार्शनिक सत्य है कि 🌴 *संतान कभी भी बिगड़ती*🌴 नहीं हमेशा बिगाड़ी जाती है। संतान को जन्म देना बहुत बड़ा काम नहीं है यह काम तो पशु पक्षी भी करते हैं।
आज का मानव समाज पशुओं से भी नीचा गिरता जा रहा है। क्योंकि *गधा से गधा, सूवर से सूवर,बैल से बैल पैदा हो रहा हैं मगर मनुष्य से मनुष्य नहीं पैदा* हो रहे हैं।
पशुओं को जितना ज्ञान,भोग,व कर्म करना है वो प्रारब्ध से *स्वाभाविक ज्ञान* ईश्वर से लेकर आता है मगर मनुष्य के लिए संविधान दूसरा है। मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए *संस्कार* ही एक मात्र कारण जो 🪷 *माता पिता व आचार्य*🪷 द्वारा ही संभव है। इसीलिए शास्त्रों में यह चर्चा बार -बार आती है कि बड़ भागी होती है वो संतान जिसे *योग्य माता-पिता -आचार्य* प्राप्त होते हैं।
उपरोक्त तीन संस्कार के बाद चौथा संस्कार *जातकर्म* संस्कार है जहां पिता स्वयं अपने हाथों से नाल काटता है पुनः बच्चे के कान में 🌼 *त्वं वेदोऽसि*🌼 कहकर उसके मानव जीवन में आने को स्पष्ट करता है।आज यह संस्कार लुप्त सा हो गया उसके तीन कारण हैं।(१) जानकारी का अभाव (२) बच्चों का अस्पतालों में जन्म लेना (३) संस्कृति से प्रेम न होना।
पांचवां *नामकरण संस्कार* यह संस्कार भी आज नहीं होता। लोग अपने मन से ही *बिना अर्थ वाले,नीरस, अंग्रेजी व ऊटपटांग नाम* रखते हैं इसीलिए बच्चों के नाम कुछ और काम कुछ हो रहे हैं।
छठा संस्कार *निष्क्रमण संस्कार* है जो १००% लुप्त हो गया है जो जन्म के चौथे माह होता है। सातवां संस्कार 🌸 अन्नप्राशन संस्कार 🌸 है। जो छठे माह में होता है अर्थात जन्म से लेकर छः माह तक शिशु को अन्न नहीं खिलाना चाहिए केवल दूध पर ही रखना चाहिए आज इस संस्कार की उपेक्षा होने से छोटे -छोटे बच्चे 🏄 लीलर के रोगी 🏄 बन रहे हैं।
🦚 *चूढ़ाकर्म संस्कार*🦚
यह आठवां संस्कार है जो एक वर्ष से तीन वर्ष के भीतर किया जाता है।
इस संस्कार से बालकों के मस्तिष्क *दृढ़ व स्वस्थ* बनते हैं।नेत्र ज्योति बढ़ती है।शरीर की उष्णता दूर होती है।दांत बिना कष्ट के बाहर आते हैं।माता के उदर से ही जन्मे ये बाल अनेक संक्रामक बिमारियों को जन्म देते हैं अतः एक वर्ष से तीन वर्ष के बीच में उतारना केवल हिन्दू के लिए नहीं अपितु मानव मात्र के लिए है। क्योंकि *संस्कारों का संबंध किसी मत पंथ मजहब के लिए नहीं अपितु यह एक शरीर,मन, बुद्धि को परिष्कृत करने का विज्ञान* है।
जनपद अयोध्या के रुदौली तहसील के निवासी *प्रेमहरि कसौधन* जी की पौत्री 🧘♀️ *आयुष्मती आद्या*🧘♀️ का 🤷♂️ चूढ़ाकर्म (मुंडन संस्कार) 🤷♂️ सपरिवार ईष्ट मित्रों व पड़ौसियो की उपस्थिति में घर पर ही 🔥 *वैदिक यज्ञ वेदी*🔥 पर हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। जिसमें आर्य समाज के प्रधान, मंत्री, कोषाध्यक्ष सहित अनेकों आर्य परिवार भी सम्मिलित रहे।
आदरणीय सत्येन्द्र शास्त्री जी ने भी इस कार्यक्रम में सक्रिय भूमिका निभाई किन्हीं अपरिहार्य कारणों से वे स-शरीर उपस्थित न रह सके। अनेक परिवारों ने इन संस्कारों को आज के युग के लिए बहुत ही अनिवार्य बताया और भावना प्रकट किया कि यदि इन संस्कारों को घर -घर में किया जाए तो *परिवारों के पलायन ।आपसी प्रेम* को पुनर्जीवित किया जा सकता है।बालिका को वेद मंत्रों से आशीर्वाद देने के साथ ही यज्ञ प्रसाद व शांति पाठ एवं वैदिक जयघोष के साथ कार्यक्रम को विराम दिया गया।
आचार्य सुरेश जोशी
*वैदिक प्रवक्ता*
आर्यावर्त साधना सदन पटेल नगर दशहराबाग बाराबंकी उत्तर प्रदेश ☎️ 7985414636☎️