🌸 *ओ३म्*🌸
🥝 ईश्वरीय वाणी वेद 🥝
*ओ३म् विश्वे देवासो अप्तुर: सुतमांगत तूर्णय: । उस्त्रा इव स्वसराणि ।।
।। ऋग्वेद १/३/८।।
🌳 *मंत्र का पदार्थ*🌳
हे ( अप्तुर: ) मनुष्यों को शरीर और विद्या आदि का बल देने और ( तूर्णय: ) उस विद्या आदि के प्रकाश करने में शीघ्रता करने वाले ( विश्वे देवास: ) सब विद्वान लोगो! जैसे ( स्वसराणि ) दिनों को प्रकाश करने के लिए ( उस्त्रा इव ) सूर्य की किरण आती जाती हैं, वैंसे ही तुम भी मनुष्यों के समीप ( सुतम ) कर्म, उपासना व ज्ञान को प्रकाश करने के लिए ( आंगत ) आया जाया करो ।
🌻 *मंत्र का भावार्थ*🌻
इस मंत्र में उपमालंकार है। ईश्वर ने जो आज्ञा दी है इसको सब विद्वान निश्चय करूं जान लेवें कि विद्या आदि शुभ गुणों के प्रकाश करने में किसी को कभी थोड़ा भी विलंब वा आलस्य करना योग्य नहीं है। जैसे दिन की निकासी में सूर्य सब मूर्तिमान पदार्थों का प्रकाश करता है, वैसे ही विद्वान लोगों को भी विद्या के विषयों का प्रकाश सदा करते रहना चाहिए!
🪵 *मंत्र का सार तत्व*🪵
इस वेद मंत्र में *ईश्वरीय वाणी वेद* की सार्थकता को प्रमाणित ही कर दिया है।पहले ईश्वर ने आज्ञा दी है। इसका अर्थ है कि ईश्वर की आज्ञा मानना ही ईश्वर की *शुद्ध उपासना* है। आज्ञा में अत्यंत वैज्ञानिकता है। संसार को व्यवस्थित चलाने के लिए ईश्वर ने मनुष्यों को चार भागों में विभक्त किया है।प्रथम *ब्राह्मण यानि= विद्वान* द्वितीय *क्षत्रिय यानि=बलवान* तृतीय *वैश्य यानि =धनवान* चतुर्थ *शूद्र यानि= सेवावान* जिस राष्ट्र के नर -नारियों में ये गुण विद्यमान होते हैं वहीं राष्ट्र *चक्रवर्ती राज्य* कहलाता है।जब से हमने ईश्वर की आज्ञा भुलाकर कतिपय अविद्वानों के कथन कि *ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र* जन्म से होते हैं भारत का इतना पतन हुआ कि अभी भी भारत नहीं संभल पाया है।
दूसरी बात ईश्वर विद्वानों को आदेश दे रहा है कि विद्वानों को *विद्या के प्रचार-प्रसार में आलस्य,प्रमाद* नहीं करना चाहिए। सत्यता यह है कि आज विश्व के ९९% प्रतिशत *मनुष्यों की पुस्तकों का ही प्रचार करते हैं। मनुष्यों की ही पूजा करते हैं। ईश्वर के ज्ञान वेद जो कि मानव मात्र के लिए है उसे भी भूल गए और सर्वशक्तिमान ईश्वर की उपासना की जगह शरीर धारी मनुष्यों की उपासना* करते हैं।इसी कारण विश्व में *मत पंथ सम्प्रदायों की बाढ़ आ गई है ।*
जबकि सत्यता यह है कि जैसे अकेले भगवान का बनाया *सूर्य जब निकलता है तभी सभी पदार्थ मूर्तिमान होते हैं* आश्चर्य इस बात का है कि ईश्वर का बनाया सूर्य अकेले आज भी ब्रह्माण्ड को प्रकाशित कर रहा है मगर ईश्वर का बनाया मानव अज्ञान रुपी अंधकार को दूर करने के लिए *वेदज्ञान से हट गया है* परमात्मा इस मंत्र द्वारा विद्वानों को सचेत कर रहा है कि *वेदज्ञान को छोड़कर मानवीय रचित पुस्तकों के प्रचार-प्रसार से धर्म नहीं मत पंथों का जन्म होगा इससे मानवता तार -तार हो जायेगी*। इसे न राजा बचा पायेगा न ही प्रजा! इसलिए विद्वानों को चाहिए अपने निजी स्वार्थ, लालच,पद, प्रतिष्ठा को त्याग कर केवल 📚 ईश्वरीय वाणी वेद 📚 का प्रचार प्रसार करें तभी *ब्राह्मण=विद्वान बनना सार्थक होगा*
आचार्य सुरेश जोशी
🍁 *वैदिक प्रवक्ता*🍁