🌳 *ओ३म्* 🌳
🩸 ईश्वरीय वाणी वेद 🩸
*ओ३म् कवी नो मित्रा वरूणा तुविजाता उरूक्षया । दक्षं दधाते अपसम्* ।
।। ऋग्वेद १/२/९।।
🌹 *मंत्र का पदार्थ*🌹
( तुविजातौ ) जो बहुत कारणों से उत्पन्न और बहुतों में प्रसिद्ध ( उरुक्षया ) संसार के बहुत से पदार्थों में रहने वाले ( कवी ) दर्शनादि व्यवहार के हेतु ( मित्रावरुणा ) पूर्वोत्तर मित्र वरुण हैं, वे (न: ) हमारे (दक्षम ) बल तथा ( अपसम् ) सुख वा दुखयुक्त कर्मों को ( दधाते ) धारण करते हैं।
🌻 *मंत्र का भावार्थ*🌻
जो ब्रह्माण्ड में रहने वाले बल और कर्म के निमित्त पूर्वोक्त मित्र और वरुण हैं, उनसे क्रिया और विद्याओं की पुष्टि तथा धारणा होती है।
🌲 *मंत्र का सार तत्व*🌲
ऋग्वेद के प्रथम मंडल के प्रथम सूक्त में अग्नि के शब्दार्थ का वर्णन किया गया था इस दूसरे सूक्त में जो वायु,इंद, मित्र और वरुण शब्दों का प्रतिपादन किया वो अग्नि शब्द के ही सहयोगी थे जिससे प्रथम सूक्त की संगति दूसरे सूक्त के साथ ही समझनी चाहिए। ऋग्वेद में पदार्थ विद्याओं का वर्णन किया गया है।इन पदार्थों को जानकर लाभ लेना ही मनुष्यों का कर्तव्य है।इस प्रकार आज ऋग्वेद मंडल एक के सूक्त दो का समापन हुआ।कल से ऋग्वेद मंडल एक सूक्त तीन का प्रारंभ होगा।
🌸🌸 *ओ३म्* 🌸🌸