होली है 

होली का त्योहार अनुठा बताता है आपसी सौहार्द।

अलग अलग रंगों का मिश्रण जगाता अपना समाजिक सौहार्द।।

रंग अनुपम और गहरा कर दिल में गहरा करता प्यार।

द्वेष घृणा को दूर कराकर दिल में भरता प्यार संचार ।।

दहन होलिका हमे बताती दहन करना है बुरे विचार।

सुन दिल की लाल धड़क को अब हमें हटाना अपना विकार ।।

 

अलग अलग रंगों की चाहत मन में भरता कुछ पाने की चाह।

उस रंगों में लिपट लिपट अब गहरा होता अपना चाह।।

 

रंग भरे हों अपने जीवन में वसंत ऋतु जैसा हो साल।

सुखद और सरस अनुभूति मिलता रहे बस साल दर साल।।

 

मृग कस्तूरी ढूंढ ढूंढ़ जब सिथिल पड़े हो अपने चाल।

फिर कस्तूरी सुगन्ध फैलाकर ऊर्जा भरे ये रंग के छाप।।

 

केशरिया रंग उस वीर जवानों को जो सीमा पर है तैयार।

जिनके कठिन तपस्या से ही हम उड़ा रहे यहाँ गुलाल।

 

दो मोती अश्रु के जिनका छूटा अपनों से साथ।

रंग हीन इस मोती से जुड़ा रहे अपनों से साथ।।

 

कवि कमलेश झा

नगरपारा भगलपुर बिहार

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