ग़ज़ल
बिन तेरे जीस्त सज़ा लगती है।
हर कली मुझसे ख़फ़ा लगती है।।
वक्त के साथ चलो पूछो मत।
बदली बदली सी हवा लगती है।।
ऐसा लगता है तेरा अपनापन।
ज़ख़्म पर जैसे दवा लगती है।।
बेसबब मुस्कुरा के रुक जाना।
खूबसूरत सी अदा लगती है।।
चश्मे खूबां के इशारों से मुझे।
महकी महकी सी फिज़ा लगती है।।
उसका लहज़ा बताए हैं हर्षित।
थोड़ी वो मुझसे ख़फ़ा लगती है।।
विनोद उपाध्याय हर्षित