ग़ज़ल
सीधा सादा है कोई बात समझता ही नहीं।
वो निगाहों के इशारात समझता ही नहीं।।
कितना नादाँ है वो हालात समझता ही नहीं ।
लाख समझाऊँ उसे बात समझता ही नहीं।।
राहे उलफ़त ही पे चलना है सदा दोनो को ।
उम्र भर का वो मगर साथ समझता ही नहीं।।
रूठ कर चेहरे से नज़रों वो हटा लेता है।
दिल पे होता है जो आघात समझता ही नहीं।।
रंग लाया है जुनूँ उसका रहे उल्फत में।
दिन को दिन रात को वो रात समझता ही नहीं।।
जिसकी चाहत में यहा उम्र गुज़ारी हर्षित।
वो मेरे बहके ख्यालात समझता ही नहीं।।
विनोद उपाध्याय हर्षित