“संकल्प करो”
आज़ादी का मतलब समझो,
प्रतिक्षण इसका ध्यान करो।
अपने बलिदानी पुरखों के,
बलिदानों का सम्मान रखो।
यह धरा रक्त से धोये सबने,
प्रतिक्षण इसका भान करो।
कर्तव्यों से क़र्ज़ चुका कर,
अधिकारों का अवधान करो।
भारत माँ कितने लाल यहाँ,
असमय में ही खोये हैं।
फिर आज़ादी के बीजों को,
इस धरती में वह बोये हैं।
कितने बेटे हँसते हँसते,
फंदों को थे चूम लिये।
तब जाकर आज़ाद हुये हम,
प्रतिक्षण इसका ध्यान रखो।
माँ देख रही कैसे असमय में,
हम स्वधर्म को भूल रहे हैं।
ये पर्व स्वच्छ संकल्पों का है,
पर हम स्वच्छंद घूम रहे हैं।
संकल्प लिये जो संविधान में,
उनको अब हम भूल रहे हैं।
अब बे लगाम हर मानक पर,
हम जैसे जंगल में घूम रहे हैं।
प्रतिमानों को हम भूल चुके,
प्रतिमाओं को हम घूर रहे हैं।
कब युवा हुये कुछ पता नहीं,
हम वचपन से भी चूक रहे हैं।
देश की सड़के भले भरी हैं,
पर चुर्री खा कर थूक रहें है।
हर वर्ष पर्व यह आ करके,
हमको बस यही बताता है।
देखो सद्काल न जाय चला,
ये जन्म हुआ जिस अर्थ भला।
अब धर्म से पंथ को दूर करो,
धारेति को ही अब धर्म कहो।
अब ऐसा सभ्य समाज गढ़ो,
मानवता का जिसमें रस हो।
हो दीन दुखी पर दया प्रचुर,
जिसका करुणामय पल २ हो।
यह देश है वीर जवानों का,
यह देश है प्रखर विद्वानों का।
इनको लेकर अब साथ चलो,
इनमें नव भूषित प्राण भरो।
इस अवसर पर संकल्प करो,
निज हित से उपर देश धरो।
निज हित से…………
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
बाल कृष्ण मिश्र कृष्ण
ग्राम कनेथू बुजुर्ग, ज़िला बस्ती
उत्तर प्रदेश
१४.०८.२०२३