अयोध्या में गीता जयंती का भव्य अनुष्ठान: 3000 से अधिक वटुक कुमारों ने किया सामूहिक पाठ; वैदिक ज्ञान के संरक्षण पर बल

 

महेन्द्र कुमार उपाध्याय
अयोध्या । रामनगरी अयोध्या में सोमवार को गीता जयंती का पावन पर्व अपार श्रद्धा और भव्यता के साथ मनाया गया। छोटी छावनी परिसर में हुए एक विशाल धार्मिक अनुष्ठान में 3000 से अधिक वटुक कुमारों और वैदिक ब्राह्मणों ने एक साथ मिलकर सामूहिक रूप से श्रीमद्भगवद्गीता का पावन पाठ किया। दिव्य वातावरण और वैदिक मंत्रों की गूंज महंत कमलनयन दास के निर्देशन में आयोजित इस समारोह से पूरा छोटी छावनी परिसर वैदिक मंत्रों की गूंज और दीपों की जगमगाहट से एक अलौकिक एवं दिव्य वातावरण में डूब गया। महंत कमलनयन दास ने इस अवसर पर गीता के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि यह वह पावन दिन है जब भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को भगवद्गीता का दिव्य उपदेश दिया था। उन्होंने एक ऐतिहासिक तथ्य का भी उल्लेख करते हुए कहा कि जिस दिन 6 दिसंबर को अयोध्या का विवादित ढांचा गिराया गया था, उस दिन भी संयोगवश गीता जयंती ही पड़ी थी।
महंत जी ने कहा, “गीता सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर संकट और द्वंद्व में मार्गदर्शन देने वाला दिव्य ज्ञान है। यह हमें कर्म, धर्म और जीवन के अंतिम सत्य का बोध कराती है। महापौर ने की सराहना इस भव्य आयोजन में अयोध्या के महापौर गिरीशपति त्रिपाठी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उन्होंने वैदिक परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित रखने की दिशा में किए जा रहे ऐसे प्रयासों की हृदय से सराहना की। वेदों की स्थापना और विद्वानों का समागम वहीं, एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, जिस पवित्र स्थल पर स्वामी दयानंद सरस्वती ने तीन माह तक रुककर ऋग्वेद का पारायण किया था, वहाँ आज चारों वेदों की विधिवत स्थापना की गई। इसी स्थान पर गीता जयंती का एक विशेष समारोह भी आयोजित हुआ, जिसमें संतों और विद्वानों ने सनातन संस्कृति और वैदिक परंपराओं के महत्व पर गहन चर्चा की।
यह आयोजन अयोध्या की प्राचीन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हुआ।