अनपढ़ माँ की जंग 

माँ का नाम आते ही मन में सम्मान का भाव बढ़ने लगता है आ. डॉक्टर नरेश सागर जी द्वारा लिखी हुई पुस्तक अनपढ़ माँ की जंग एक जीता जागता उदाहरण है। माँ के संघर्ष का बचपन की कठिनाइयों से लेकर जीवन के विभिन्न पड़ावों को पार करते हुए आपने जो चित्र खींचा है नजरों के सामने मंचन होता हुआ प्रतीत होता है। माँ ने जिन कठिनाइयों से अपना सफर पूरा किया है वह अनुकरणीय है, बल्कि यह कहूंगा कि अपने आप में साहस का एक जीता जागता उदाहरण है। मुश्किल वक्त में किस तरह से धैर्य रखते हुए समस्याओं को सुलझाया जाता है हर समस्या के समाधान के लिए किस तरह अपने विवेक का यथोचित इस्तेमाल किया जाता है उस पहलू को ध्यान में रखते हुए माँ की कहानी अभूतपूर्व, अद्वितीय एवं अकल्पनीय है। पुस्तक के अंदर अपने चुंबकीय प्रभाव पैदा कर दिया है। पाठक को अपनी ओर आकर्षित करती है खींचती है। पुस्तक के जिस पन्ने को खोलते हैं पढ़ना शुरू करते हैं तू रुकने का मन ही नहीं करता है। हर एक पन्ना संघर्ष की एक अलग कहानी बयां करता है। समाज के अंदर अपनी पहचान स्थापित करना हो या फिर समाज के अंदर जो गलत लोग, जो टांग खींचने वाले या जो मुश्किल में पैदा करने वाले लोग हैं उन सबसे किस तरह से धैर्य पूर्वक निपटना है, यह माँ अच्छी तरह से जानती है, अलग-अलग विपदाओं को झेलते हुए माँ ने इस सफर को पूरा किया है। प्रस्तुत घटनाएं प्रमाण है इस बात का कि उन्होंने अपने विवेक के साथ-साथ अपने परंपरा अपने मूल्यों को ध्यान में रखकर जीवन को जिया है। सदैव ही त्याग का उदाहरण पेश किया है। आ. डॉक्टर नरेश सागर जी एक मंझे हुए साहित्यकार हैं, अपनी बात को बेबाकी से रखने के लिए जाने जाते हैं। इस पुस्तक में जिस तरह से घटनाक्रम को प्रस्तुत करते हुए आंचलिक भाषा के शब्दों का सही-सही प्रयोग किया है वह काबिले तारीफ है। घटनाओं को क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत करना पुस्तक के महत्व को बढ़ा देता है। आपकी भाव अभिव्यक्ति शानदार है। हर पहलू को छूते हुए आपने पाठकों के मन को मोह लेने का जो बीड़ा उठाया है उसे आपने अंजाम तक पहुँचाया है। आपकी गजल एवं कविताओं को सुनकर जो प्रेरणा मिलती है इसी भाव को आपने अपनी इस पुस्तक में समझाने का सार्थक प्रयास किया है। आप पद्य के माहिर रचनाकार होने के साथ गद्य विधा में भी पारंगत हैं। आपका कोई सानी नहीं है। शब्द संयोजन कमाल का है। माँ के उद्गारों को लेखनीबद्ध करने में जो साधना आपने की है, निश्चित ही वंदनीय, नमनीय एवं अनुकरणीय है। आपके लेखन की बारीकियां प्रेरणादायक है।प्रस्तुतीकरण अद्भुत है। माँ के संघर्ष की गाथा को लिपिबद्ध करने के लिए तथा समाज को मार्गदर्शन देने के लिए आ. डॉ नरेश सागर जी को हृदय से बधाइयां प्रेषित करता हूँ। आशा करता हूँ आपकी यह पुस्तक जनमानस की संवेदनाओं को छूते हुए दिलो दिमाग में अपनी पक्की जगह बनाएंगी और पाठक के मानस पटल पर स्थाई रूप से अंकित हो जाएगी।

आपकी श्रेष्ठ कृति के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई मंगल कामनाएं।

आर डी गौतम विनम्र

देवली गाँव नई दिल्ली