बंदी छोड़ दिवस और गुरु तेग बहादुर साहिब जी का शहीदी दिवस: अयोध्या के गुरुद्वारा नजरबाग में उमड़ी श्रद्धा, भाईचारे और सेवा का दिया संदेश

 

महेन्द्र कुमार उपाध्याय
अयोध्या। रामनगरी अयोध्या के ऐतिहासिक गुरुद्वारा गुरु नानक गोविंद धाम, नजरबाग में आज बंदी छोड़ दिवस और सिखों के नौवें गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के 350वें शहीदी दिवस के पावन अवसर पर एक विशेष और विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर आयोजित वार्षिक महान गुरमत समागम में देशभर से आई संगत (श्रद्धालुओं) ने पूरी श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ भाग लिया। शांति, सेवा और भाईचारे पर ज़ोर कार्यक्रम में नानकसर सिंघड़ा करनाल से पधारे संत बाबा अमरजीत सिंह भोला ने संगत को संबोधित किया। उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि सिख धर्म सदा से ही शांति, सेवा और भाईचारे का प्रतीक रहा है। उन्होंने समाज से भेदभाव मिटाने का आह्वान करते हुए कहा, “हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं, समाज में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।” इस दौरान संगत को गुरबाणी कीर्तन के माध्यम से गुरु चरणों से जोड़ा गया और गुरु नानक देव जी के उपदेशों को जीवन में अपनाने का संदेश दिया गया।
बंदी छोड़ दिवस का महत्व
गुरुद्वारा नजरबाग के जत्थेदार बाबा महेंद्र सिंह ने बंदी छोड़ दिवस के ऐतिहासिक महत्व को विस्तार से बताया। उन्होंने जानकारी दी कि यह दिवस दीपावली के दिन सिखों के छठे गुरु, श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी द्वारा ग्वालियर किले से 52 राजाओं को रिहा कर अमृतसर लाने की स्मृति में मनाया जाता है। उसी दिन अमृतसर नगरी दीपों से जगमगा उठी थी। गुरु तेग बहादुर जी की शहादत का स्मरण कार्यक्रम में पहुंचे बाबा करमजीत सिंह (करनाल) ने इस आयोजन के मुख्य उद्देश्य को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि समागम का उद्देश्य गुरु तेग बहादुर जी की महान शहादत को स्मरण करते हुए उनके दिखाए मार्ग — मानवता, सेवा, समानता और एकता के संदेश को समाज में व्यापक रूप से फैलाना है।
ऐतिहासिक स्थल है गुरुद्वारा नजरबाग सेवादार नवनीत सिंह ने इस गुरुद्वारे की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि नजरबाग स्थित यह गुरुद्वारा सिख इतिहास का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है, जहां स्वयं गुरु नानक देव जी और गुरु गोविंद सिंह जी के चरण पड़े थे।
कार्यक्रम के अंत में सभी श्रद्धालुओं ने एक स्वर में संकल्प लिया कि वे गुरु साहिबान की शिक्षाओं पर चलते हुए प्रेम, भाईचारा और मानवता का संदेश जन-जन तक पहुंचाएंगे। इसके पश्चात संगत ने श्रद्धा और उत्साह के साथ लंगर प्रसाद ग्रहण किया। विशेष रूप से उपस्थित रहे:
इस अवसर पर भाई इंदरजीत सिंह (अमृतसर), भाई संतवीर सिंह, गुरप्रीत सिंह (गुरुद्वारा आलमबाग, लखनऊ), परमजीत सिंह (नौतनवा), और आदित्य को लोग समेत अनेक गणमान्य व्यक्ति और श्रद्धालु विशेष रूप से उपस्थित रहे।