भक्ति, त्याग और मर्यादा के रंग में रंगी रामकथा: राजन जी महाराज ने सुनाया निषादराज की भक्ति और कैकेयी कोपभवन का मार्मिक प्रसंग

रिपोर्टर अनुराग उपाध्याय

परानूपुर (प्रतापगढ़): कुंडा के परानूपुर स्थित श्रृंगवेरपुर धाम में चल रही नौ दिवसीय संगीतमयी श्रीराम कथा के छठवें दिन गुरुवार को कथावाचक पूज्य राजन जी महाराज ने निषादराज की अनूठी भक्ति, कैकेयी कोपभवन के मार्मिक क्षणों और भगवान श्रीराम के वनगमन जैसे प्रसंगों का दिव्य वर्णन किया। कथा श्रवण कर पूरा पंडाल भक्ति और भाव से सराबोर हो गया, और भजनों की स्वर लहरियों पर श्रद्धालु झूम उठे।

भगवान सुख-दुख से परे हैं

राजन जी महाराज ने भक्तों को जीवन का महत्वपूर्ण संदेश देते हुए कहा कि “भगवान सुख-दुख से परे हैं।” उन्होंने श्रृंगवेरपुर का प्रसंग सुनाया, जब निषादराज भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण को विश्राम करते देखकर व्यथित हो उठे। निषादराज ने जब कैकेयी के निर्णय पर दुख व्यक्त किया, तो लक्ष्मण जी ने उन्हें समझाया कि प्रभु परम ब्रह्म हैं और वे सुख-दुख से ऊपर हैं।

इस प्रसंग पर राजन जी महाराज ने भावपूर्ण भजन प्रस्तुत किया: “सुख-दुख दोनों माया के खेल, प्रभु न कभी रुठे न कभी मेल।” भजन की धुन पर ‘जय श्रीराम’ के नारों से कथा स्थल गूंज उठा।

कैकेयी के कोपभवन और वनगमन का मार्मिक दृश्य

कथा का शुभारंभ भजन “कथा श्रवण कर मिट जाती है सौ जन्म-जन्म की व्यथा” से हुआ। उन्होंने महाराज दशरथ द्वारा श्रीराम के राज्याभिषेक की घोषणा और उसके बाद मंथरा के उकसावे में आकर कैकेयी के कोपभवन में जाने का प्रसंग सुनाया।

कैकेयी द्वारा दो वरदान (भरत को राज्याभिषेक और श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास) मांगे जाने पर, राजन जी महाराज ने बताया कि भगवान श्रीराम ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वनवास स्वीकार किया। उन्होंने भावुक होकर कहा, श्रीराम ने कैकेयी को ‘मां’ कहकर आशीर्वाद दिया। इस त्याग को दर्शाते हुए उन्होंने भजन गाया: “मां के वचन पे राम गए, जग के लिए मिसाल बने।” इस मार्मिक वर्णन से श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गईं।

निषादराज की भक्ति और गुरुदेव का आगमन

भक्त निषादराज और श्रीराम के मिलन का वर्णन करते हुए राजन जी महाराज ने कहा कि भगवान ने जब निषादराज को गले लगाया, तो उन्होंने अपने चरणों में स्थान मांगा। इस पर उन्होंने भजन गाया, “राम बिना सब सूना लागे, नाम बिना सब फूटा भागे।”

कथा के छठवें दिन पूज्य राजन जी महाराज के आध्यात्मिक गुरुदेव प्रेमभूषण महाराज का भी आगमन हुआ। पुष्प वर्षा से उनका स्वागत किया गया। प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि ईश्वर सर्वव्यापी हैं, और सच्चे मन, श्रद्धा तथा निष्काम भक्ति से ही उनकी प्राप्ति संभव है। उन्होंने “राम ब्रह्म परमार्थ रोक अभीगत अगल अलग” और “मनवा छोड़ दे मोह माया के बंधन, राम नाम ही सच्चा साधन” भजन गाकर वातावरण को भक्तिमय बना दिया।

आयोजक आनंद पांडेय के संयोजन में चल रही यह कथा प्रतिदिन भक्ति, त्याग और मर्यादा का जीवंत संदेश दे रही है। आगामी दिनों में श्रीराम के वनवास काल के अगले प्रसंगों का वर्णन होगा, जिसका श्रद्धालुओं को बेसब्री से इंतजार है।