हिन्दी दिवस पर निवेदित
*(चतुष्पदियाँ)*
कब हिन्दी का किला ढहा है,
हर भाषा ने हाथ गहा है ।
सभी काल में “वी०के० वर्मा” ।
हिन्दी का वर्चस्व बढ़ा है ।
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हिन्दी ने मधुमास दिया है ।
अधरों पर उल्लास दिया है ।
हिन्दी ने अनुकम्पा करके,
सूर, कबीर, तुलसीदास दिया है ।
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बात कह रहा हूँ मैं साँच,
रहा हूँ ढ़ाई आखर बाँच ।
कभी नहीं आ सकती ‘वर्मा’
हिन्दी की गरिमा पर आँच ।
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हर क्षण ही गतिमान हुआ है ।
कभी नहीं अपमान हुआ है ।
ब्रिटिश काल में भी तो “वर्मा”
हिन्दी का सम्मान हुआ है ।
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तुम हिन्दी का चरण पखारो ।
निज जननी का कर्ज उतारो ।
हिन्दी दिवस मनाकर “वर्मा”
हिन्दी का महत्व स्वीकारो ।
*दोहे –*
वर्मा हर पल कीजिये हिन्दी का उत्थान ।
हिन्दी अपने देश की आन मान है शान ।
हिन्दी का झंडा करो “वर्मा” सदा बुलंद ।
हिन्दी की गंगा नदी बहने दो स्वछन्द ।
तुम हिन्दी की प्रगति मे दो न किसी कौं दोष ।
भू-से नभ तक गूंजता हिन्दी का जयघोष ।
*डा. वी. के. वर्मा*
आयुष चिकित्साधिकारी,
जिला चिकित्सालय बस्ती