इक नई ग़ज़ल

ग़ज़ल

नए जंजाल पाले जा रहे हैं।
तुम्हारे ख़त खगांले जा रहे हैं।।

अंधेरों ने रची कुछ ऐसी साजिश।
मेरे घर से उजाले जा रहे हैं।।

मिलन की कल्पना दिल में लिए वो।
कहां आंचल संभाले जा रहे हैं।।

मुझे बर्बाद करने के लिए फिर।
नए रस्ते निकाले जा रहे हैं।।

सजी है कौन सी महफ़िल यहां पर।
सुनहरे रूप वाले जा रहे हैं।।

इधर मैं बच के रहना चाहता हूं।
उधर कुछ सांप पाले जा रहे हैं।।

विनोद उपाध्याय हर्षित

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