टैरिफ वार के समय में देश के जनमानस को दर्शाती मेरी कविता

“कर्तव्य त्यागूं गा नहीं” आपके आशीर्वादार्थ।

मैं कर्तव्य त्यागूं गा नहीं,
चाहे राह दुर्गम हो कठिन।
चाहे शूल कितने हों बिछे,
मैं मुड़ के देखूंगा नहीं।
अब धर्म के इस युद्ध में,
मैं गाण्डीव छोडूंगा नहीं।
मैं कर्तव्य त्यागूं गा नहीं।।१

चाहे दिवस कितना तप्त हो,
और रात कितनी हो सघन।
चाहे संसाधनों का टूट हो,
और अपने स्वजन में फूट हो।
इस राष्ट्र के संकल्प को,
मैं हरगिज भुलाऊंगा नहीं।
मैं कर्तव्य त्यागूं गा नहीं।।२

हर एक को मंजूर हो,
या फिर कोई प्रतिकूल हो।
कोई साथ हो स्वीकार है,
कुछ भी कहे अधिकार है।
कर्तव्य पथ से दृष्टि को,
मैं हरगिज डिगाऊंगा नहीं।
मैं कर्तव्य त्यागूं गा नहीं।।३

कर्तव्य हित में जो किया,
चाहे हो सही या हो गलत।
मैं राष्ट्र के इस भाल पर,
लिखकर मिटाऊंगा नहीं।
तुम श्रेष्ठ हो बनते रहो,
मैं खुद को गिराऊंगा नहीं।
मैं कर्तव्य त्यागूं गा नहीं।।४

तुम अट्टालिकाओं में रहो,
और तख्त ताजों से सजो।
जो प्राप्त है पर्याप्त है पर,
मैं पात्र दिखलाऊंगा नहीं।
अपने धरातल से कदम,
मैं पीछे हटाऊंगा नहीं।
मैं कर्तव्य त्यागूं गा नहीं।।५

तुम भीरू हो दम्भित रहो,
और घमंड से पोषित रहो।
मैं अब धर्म के इस युद्ध में,
राजधर्म सिखलाऊंगा नहीं।
उस शून्य दृष्टि को कभी,
मैं दर्पण दिखलाऊंगा नहीं।
मैं कर्तव्य त्यागूं गा नहीं।।६

बाल कृष्ण मिश्र ‘कृष्ण’
11 अगस्त 2025
ग्राम- कनेथू बुजुर्ग,
जिला- बस्ती, उत्तर प्रदेश।