वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक
कुरुक्षेत्र : हार्मनी ऑकल्ट वास्तु जोन के अध्यक्ष और श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के पीठाधीश ज्योतिष व वास्तु आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि पर राखी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भाई-बहनों के प्रेम, रिश्ते, विश्वास और उनकी शक्ति को समर्पित है। इस दिन सभी बहनें अपने भाई की उन्नति और सुखी जीवन की कामना करते हुए उसे राखी बांधती हैं। भाई भी बहन के प्रेम-सम्मान को स्वीकार करते हुए उसे जीवन भर रक्षा का वचन देता है। यह पर्व रिश्तों सहित घर-परिवार और समाज में भी खुशियों की लहर लेकर आता है।
रक्षासूत्र का मंत्र है- येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
इस मंत्र का सामान्यत: यह अर्थ लिया जाता है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहित अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं। इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।
इस दिन प्रात: उठकर स्नान करके यमुना व उनके भाई यमराज को प्रणाम करना चाहिए I मृत्यु के देवता यम को उनकी बहन यमुना ने इसी दिन राखी बांधी और अमर होने का वरदान दिया। यम ने इस पावन दिन को अक्षुण्ण रखने के लिए घोषणा की जो भाई इस दिन अपनी बहन से राखी बंधवाएगा और उसकी रक्षा करने का वचन देगा। वहां मेरे दूत नही जांऐगे और उसकी अकाल मृत्यु नही होगी। इस पर्व के पीछे यह भाव है कि समाज में रहने वाले लोग मिलजुल कर रहें और जरूरत पडऩे पर एक दूसरे की सहायता कर सके। यह पर्व भाईयों को शक्तिशाली होने का बोध कराता है। जिन भाईयों की बहने नही होती वे भी अपनी मुंहबोली बहन,चाहे वह किसी भी धर्म की हो, उनसे बड़े प्रेम और श्रद्धा से राखी बंधवानी चाहिए।