किये मैं वादे से अपने मुकरने वाला था

बुरी तरह से मैं खुद से झगड़ने वाला था ,
किये मैं वादे से अपने मुकरने वाला था ।
किसी के आसुओं ने बढ़ के मुझको रोक लिया
वगरना आज मैं हद से गुजर ने वाला था
दहाड़ सुन के मेरी छुप गया न जाने कहां
वही वो शख़्स जो मुझ को निगलने वाला था
किसी ने उस के कहीं कान भर दिये न हों
सुना था आज वो पत्थर पिघलने वाला था
किसी ने थपकी दी हौले से मेरे कान्धे पर
सम्भल गया मैं वगरना बहकने वाला था
तुम्हारे तंज़ का पत्थर मैं हंस के झेल गया
नही तो आज ये रिश्ता दरकने वाला था
किसी के आने की आमद ने मुझको रोक लिया
वगरना आज ये सूरज तो ढ़हले वाला था
सरहाने आ के मेरे बैठे किस घड़ी वो नदीम
क़ज़ा का का वक़्त था और दम निकलने वाला था ।

नदीम अब्बासी नदीम
गोरखपुर