मेरे जीवन के गुरु: श्रीकृष्ण और श्रीमद् भगवद्गीता

गुरु पूर्णिमा केवल किसी व्यक्ति-गुरु को प्रणाम करने का दिन नहीं है, बल्कि यह उस प्रकाश को नमन करने का अवसर है, जो अज्ञान के अंधकार में हमारे पथ को आलोकित करता है। मेरे जीवन में अनेक गुरु आए — माता-पिता, शिक्षक, मित्र, बच्चे, यहाँ तक कि जीवन की परिस्थितियाँ भी। हर एक से मैंने कुछ न कुछ सीखा, और इसीलिए सबको सच्चे अर्थों में मैं गुरु ही मानती हूँ।

 

परंतु जब जीवन ने मुझे उस मोड़ पर ला खड़ा किया जहाँ रास्ते धुंधले हो चले थे, उत्तर धुंध में खो गए थे और आत्मा व्यथित थी — तब मेरे जीवन में प्रवेश हुआ श्रीमद् भगवद्गीता का।

 

ना कोई शोर था, ना कोई बाहरी उपदेश, केवल शांति थी — श्लोकों की, वाक्यों की, और उनके अर्थों की। श्रीकृष्ण की वाणी, अर्जुन को दी गई वह दिव्य दृष्टि — वही मेरे भी जीवन की दृष्टि बन गई।

 

जीवन के कठिन क्षणों में जब कोई साथ नहीं होता, तब श्रीकृष्ण कहते हैं —

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”

(तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल में नहीं।)

 

इस एक श्लोक ने जैसे मेरी आत्मा को थाम लिया।

 

मैंने जाना कि जीवन की असली शांति अपेक्षा से नहीं, समर्पण से आती है। जब मन को यह ज्ञात हो जाता है कि जो हो रहा है, वह प्रभु की इच्छा से हो रहा है, तब चिंता शांत हो जाती है, और भीतर एक दिव्य विश्वास जन्म लेता है।

 

श्रीमद् भगवद्गीता मेरे लिए ग्रंथ नहीं, जीवन-संगिनी बन गई। वह पुस्तक नहीं, वह साक्षात गुरु है — जो मौन में बोलती है, दुःख में ढाढ़स देती है और मोह में विवेक प्रदान करती है।

 

गुरु पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर मैं उन सभी गुरुओं को कोटि-कोटि प्रणाम करती हूँ जिन्होंने मेरे जीवन को दिशा दी, परंतु सबसे अधिक — मेरे हृदय के गुरु भगवान श्रीकृष्ण और उनकी श्रीमद् भगवद्गीता को — जिन्होंने मेरी आत्मा को जाग्रत किया।

 

🙏 हे माधव, हे योगेश्वर — मेरे जीवन को आपने सार्थक बनाया। मैं चाहती हूँ कि यह लेख उन सभी तक पहुँचे जो अपने उत्तरों की तलाश में हैं। जो जीवन के संघर्षों में थक चुके हैं — वे एक बार श्रीमद् भगवद्गीता उठाएं, और श्रीकृष्ण से संवाद करें।

 

आपका गुरु आपका मार्ग देख रहा है — वह पुस्तक के पन्नों में नहीं, आपके हृदय की धड़कनों में समाया है।

 

🕉️ जय श्रीकृष्ण।

🙏 गुरु पूर्णिमा की मंगलमय शुभकामनाएं।

 

नेहा वार्ष्णेय

दुर्ग छत्तीसगढ़