याद-ए-हुसैनؓ में सजी शायरी की महफ़िल,कर्बला की गूंज
लखनऊ।यौमे आशूरा के मौक़े पर ‘मीडिया फ़ाउंडेशन’ के ज़ेरे-एहतमाम एक असरदार और रूहानी मुशायरा शीर्षक ‘हुसैनؓ’ का आयोजन किया गया,जो मशहूर पत्रकार और अदीब डॉ. सुल्तान शाकिर हाशमी की रिहाइशगाह, नजीर आबाद, लखनऊ में मुनअकिद हुआ।इस महफ़िल की शुरुआत क़ारी मसूद अहमद फहीमी की तिलावत-ए-क़ुरआन से हुई। मुशायरे की सदारत उस्ताद शायर फारूक जाज़िब लखनवी ने की, जबकि मेहमान-ए-ख़ास के तौर पर मशहूर शायर वासिफ़ फारूक़ी शरीक हुए। महफ़िल का संचालन डॉ. सुल्तान शाकिर हाशमी ने अंजाम दिया, जो न सिर्फ़ अदबी दुनिया में अहम मक़ाम रखते हैं बल्कि सहाफ़त, तस्नीफ़ व तालीफ़ और तहज़ीबी शुऊर के फ़रोग़ में भी सरगर्म हैं।अपने इफ्तिताही कलिमात में डॉ. सुल्तान शाकिर हाशमी ने कहा:
“यौमे आशूरा इमाम हुसैनؓ की क़ुर्बानियों को याद करने का दिन है, मगर यह याद सिर्फ़ आँसू नहीं, बल्कि अमल की मांग करती है। हुसैनؓ मज़लूम की हिमायत और ज़ालिम से इंकार का नाम है। अदब अगर इस पैग़ाम को अपने दामन में समेट ले तो वह समाज की रूह बन सकता है।”
महफ़िल में पेश किए गए कुछ चुनिंदा अशआर नज़र-ए-नाज़रीन हैं:
वह मआरका हुसैनؓ ने इस तरह सर किया
मानी बदल के रख दिए फ़त्ह ओ शिकस्त के
— वासिफ़ फारूक़ी
कर्बला की दास्तान का ख़ास ये पहलू भी है
सर कटा तो हो गया सज्दा अदा शब्बीर का
— फारूक जाज़िब लखनवी
जिहाद-ए-ज़िंदगी में जिसका अज़्म लाजवाब है
हुसैनؓ उसका नाम है, वो इब्ने बुतराबؓ है
क़सीदा-ए-हुसैनؓ है जहान की ज़ुबान पर
ये वक़्त ने बता दिया कि कौन कामयाब है
— डॉ. सुल्तान शाकिर हाशमी
बहुत रोता है अपनी बदनसीबी पर कोई दरिया
उसे प्यासे लबों की जब शिद्दत याद आती है
— सलीम ताबिश
जो पूछते हो तो आओ बताएं क्या हैं हुसैनؓ
सवाद-ए-शब में उजालों का क़ाफ़िला हैं हुसैनؓ
— डॉ. हारून रशीद
साहिल पर एक दौर में होगा महाज़-ए-जंग
हर दौर में रहेगी ज़रूरत हुसैनؓ की
— मुहम्मद अली साहिल
नमाज़ फ़र्ज़ है सब पर किसी भी हालत में
ये कर्बला में सभी को बता रहे हैं हुसैनؓ
— मुहम्मद फारूक़ आदिल
है फ़ातिमा के दुलारों से हसन लैल ओ नहार
है महताब हसन और आफ़ताब हुसैनؓ
— इरफ़ान लखनवी
अली के ख़ून की जिसकी रगों में है निख़त
वो दोस्त पर हो कि नेज़े पे सर महकता है
सर हुसैनؓ जुदा हो के तन से बोल उठा
गुलाब शाख़ से भी टूट कर महकता है
— रिफअत शीदा सिद्दीक़ी
फ़ज़्ल फ़रमा हम सभी ईमान वालों पर ख़ुदा
हो निगाह-ए-लुत्फ़ तुझ को वास्ता शब्बीर का
— मसूद अहमद फहीमी
रहा है सर बह सज्दा नरग़ा-ए-अदा में भी मोमिन
शहीद ख़ंजर भी उसकी शान-ए-ईमानी नहीं जाती
— आफ़ताब असर टाण्डवी
बेदम यही तो पाँच हैं मक़सूद-ए-कायनात
ख़ैरुन्निसा हुसैनؓ हसनؓ मुस्तफ़ा अलीؓ
— सय्यद ग़ुलाम हुसैन
महफ़िल के इख़्तताम पर दुआईये कलिमात अदा किए गए और इस उम्मीद का इज़हार किया गया कि इस तरह के प्रोग्राम क़ौम-ओ-मिल्लत को बیدार करने और रूहानी इक़दार को ज़िंदा रखने का ज़रिया बनते रहेंगे।इस महफ़िल में जिन अहम शख़्सियात ने शिरकत की, उनमें शायरों के अलावा अहल-ए-क़लम ख़ास तौर से क़ाबिल-ए-ज़िक्र हैं:
क़ारी मिस्बाहुल हक़, मुहम्मद अहमद ख़ान,अज़ीज़ सिद्दीक़ी,अब्दुल वहीद,क़ारी सय्यद हबीब अहमद, मुहम्मद इज़हार हुसैन, शाहज़ैब हाशमी, सफ़दर हबीब, मुहम्मद मुबीन और दीगर अहल-ए-ज़ौक़।