दिनाँक…23 June 2025
जो कुछ मुझ में रह गया है,
वो टूटी रातों की सिसकियों में भी उजाले खोजता है,
जो तन्हाई में मुस्कुराना जान गया है,
और बच्चों की हँसी में खुद को फिर से जीता है।
वो थकी आँखें अब स्वप्न नहीं छोड़ती,
बल्कि हर आँसू में भविष्य सींचती हैं,
जो टूटकर भी बिखरी नहीं,
नेहा अब धूप बनकर ही जिया करती है।
नारीत्व उसका श्रृंगार है,
कमजोरी नहीं — साहस की पुकार है।
वो मंदिर की घंटियों सी शांत,
मगर तूफ़ानों जैसी प्रभावशाली है।
जो कुछ मुझ में रह गया है,
वो बस एक अधूरी कहानी नहीं,
बल्कि वो आत्मा है जो हर दर्द में
इश्क़ की मुस्कान सी उग आई है।
स्वरचित
नेहा वार्ष्णेय
दुर्ग छत्तीसगढ़