शब्द धनुष की प्रत्यंचा है, जो प्रेम को जीत जाए,
प्रेम का अटूट बंधन बन जाए, जो दिल को छू जाए।
शब्द सखा बन जाए, जो साथ दे, हर पल साथ निभाए,
प्रेम की गहराई में डूब जाए, जो दिल को समझाए।
शब्द प्रियतमा से प्रियतम, के काव्य का आधार बन जाए,
उसके हर भाव को व्यक्त करे, उसके प्रेम को दर्शाए।
शब्द प्रेम का दीपक बन जाए, जो दिल को रोशन करे,
प्रेम की ज्योति में खो जाए, जो दिल को समझाए।
शब्द में नेह बस जाए, प्रेम की गहराई में समा जाए,
आशक्ति का एहसास हो, जो दिल को छू जाए।
शब्द उसी के भाव में समा जाए, जो प्रेम को बढ़ाए,
प्रेम का बंधन मजबूत करे, जो दिल को जीत जाए।
*दिल की कलम से*
स्वरचित एवं भावपूर्ण
मुकेश “कविवर केशव” सुरेश रूनवाल