महेन्द्र कुमार उपाध्याय
अयोध्या के रामलला सदन में आज से जगदगुरू रामानुजाचार्य डॉ. राघवाचार्य की सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंभ हो गया है। पहले दिन कथा का सार बताते हुए डॉ. राघवाचार्य ने कहा कि श्रीमद् भागवत भगवान की आरती के समान है, जो जीव को दिव्य ज्ञान प्रदान कर उसे मोक्ष की ओर ले जाती है। उन्होंने जोर दिया कि जो प्राणी इस कथा को सुनता है, उसे ईश्वर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। उनके अनुसार, जीवन में कथा का होना व्यथा को दूर रखता है, और जब तक व्यथा है, तब तक कथा का आगमन संभव नहीं। डॉ. राघवाचार्य ने संसार में कुछ भी पाने या खोने के महत्व पर बात करते हुए सनकादिक और नारद जी के संवाद का प्रसंग सुनाया। उन्होंने बताया कि कैसे अज्ञानी व्यक्ति धन खोने पर परेशान होता है, जबकि ज्ञानी नारद अपनी उदासी का कारण बताते हैं। नारद जी ने कहा कि उन्होंने पुष्कर, नैमिष जैसे अनेक तीर्थों का भ्रमण किया, जिनमें ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर पुष्कर में है, जो तीर्थों के पुरोहित हैं, और प्रयागराज को राजा कहा गया है। उन्होंने श्रीरंगम में रंगनाथ भगवान के दर्शन भी किए, लेकिन उन्हें कहीं भी शांति नहीं मिली। उन्होंने तीर्थों में अनाचारी लोगों के निवास से उनके महत्व के घटने पर चिंता व्यक्त की।
उन्होंने तीर्थों की शुचिता बनाए रखने पर जोर दिया और कहा कि विकास के नाम पर जो हो रहा है, वह ठीक नहीं है। तीर्थों का लाभ तभी मिलता है जब व्यक्ति वहां जाने से पहले अपना आचरण शुद्ध कर ले। नारद जी को हर जगह कलियुग का प्रभाव दिखा। अंत में, वृंदावन पहुंचकर यमुना तट पर उन्होंने एक स्त्री को देखा जिसकी कई लोग सेवा कर रहे थे। उस स्त्री ने नारद जी को रोककर अपनी चिंता दूर करने का आग्रह किया। वह स्त्री कोई और नहीं बल्कि भक्ति स्वयं थीं। उन्होंने नारद जी से कहा कि उनका जन्म दक्षिण भारत (द्रविड़ देश) में हुआ, कर्नाटक में वह बड़ी हुईं, महाराष्ट्र में उनका प्रचार हुआ, लेकिन गुजरात आकर वह वृद्ध हो गईं। उनकी सबसे बड़ी चिंता उनके दो पुत्रों, ज्ञान और वैराग्य को लेकर थी, जो अब वृद्ध और शक्तिहीन हो चुके थे। भक्ति ने नारद जी से अपने इस दुख को दूर करने की प्रार्थना की।