हम सभी शारीरिक रूप से वर्तमान में होते हैं, पर मानसिक रूप से या तो बीते कल की यादों में उलझे रहते हैं, या आने वाले कल की चिंता में खोए रहते हैं। यह मनुष्य का स्वाभाविक स्वभाव है — बीते अनुभवों को दोहराना और भविष्य की कल्पनाओं में खो जाना।
पर क्या कभी हमने यह सोचा है कि इस प्रक्रिया में हम वर्तमान, जो सबसे वास्तविक क्षण है, उसे पूरी तरह अनुभव करने से चूक जाते हैं?
आज की दुनिया में हमारी दिनचर्या बहुकार्य (multi-tasking) बन चुकी है। हम एक ही समय में मोबाइल पर स्क्रॉल कर रहे होते हैं, टीवी देख रहे होते हैं, खाना खाते हैं तब फोन चलाते हैं, घर में काम करते समय गाने सुनते हैं, यहां तक की गाड़ी चलाते समय भी लोग अपने फोन में उलझे रहते हैं l
पर क्या वास्तव में हम कोई भी काम पूरी तन्मयता से कर रहे होते हैं?
यह प्रवृत्ति हमें मानसिक थकान, चिंता, और असंतोष की ओर ले जाती है। हम दिनभर कुछ न कुछ कर रहे होते हैं, पर अंत में लगता है कि हमने कुछ भी पूरा नहीं किया। मन हमेशा अधूरा-सा रहता है।
जबकि अगर समझें तो वर्तमान ही एकमात्र क्षण है जिसे हम वास्तव में अनुभव कर सकते हैं। अतीत केवल स्मृति है, और भविष्य कल्पना। जब हम पूरी उपस्थिति के साथ एक काम करते हैं — चाहे वह खाना खाना हो, किसी से बात करना हो, या सिर्फ साँस लेना हो — तो उसमें एक गहराई और संतोष की अनुभूति होती है।
इसीलिए “एक समय में एक काम” का सिद्धांत न केवल हमें अधिक प्रभावी बनाता है, बल्कि हमारे मन को भी शांति देता है। जब हम अपने पूरे ध्यान से किसी काम को करते हैं, तो उसकी गुणवत्ता बढ़ती है, और हम थकते भी कम हैं।
विचार का अंत नहीं, पर विराम ज़रूरी है
अतीत की स्मृतियाँ और भविष्य की योजनाएँ आवश्यक हैं, पर उनके बीच रुककर, ठहरकर वर्तमान को जीना भी उतना ही ज़रूरी है। एक संतुलन चाहिए — जहाँ हम सीखते हैं, योजना बनाते हैं, पर जीते हैं अभी।
अगर हम हर दिन कुछ पल पूर्ण रूप से वर्तमान में जी लें, तो शायद जीवन की दौड़ में हम खुद को खोने से बच सकते हैं। कोशिश करें — एक काम करें, पूरी उपस्थिति के साथ करें, और देखिए कैसे आपका अनुभव बदल जाता है।
नेहा वार्ष्णेय
दुर्ग छत्तीसगढ़