आजकल भाग दौड़ भरी दुनिया में जो इतने अपराध बढ़ते जा रहे हैं, हमें यह ध्यान रखना होगा कि बच्चों को शिक्षा के साथ संस्कारो की नितांत आवश्यकता है l
शिक्षा का अर्थ केवल पुस्तकों में उलझे रहना नहीं है। आज जब हम तकनीक, विज्ञान और प्रतिस्पर्धा की दुनिया में तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि बच्चों को केवल साक्षर बनाना पर्याप्त नहीं, उन्हें संस्कारवान बनाना उससे कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
शिक्षा बच्चों को ज्ञान देती है, पर संस्कार उन्हें इंसान बनाते हैं। आज के बच्चे कल का भविष्य हैं — लेकिन यदि इस भविष्य में करुणा, नैतिकता और सहिष्णुता न हो, तो हम किस दिशा में जा रहे हैं?
संस्कार वह बीज हैं जो एक बच्चे के भीतर दया, सहानुभूति, अनुशासन और जिम्मेदारी जैसे गुण पैदा करते हैं। एक डॉक्टर अगर प्रतिभाशाली हो लेकिन करुणाहीन हो, तो वह रोगी का इलाज तो कर सकता है, लेकिन उसका मन नहीं समझ सकता। एक वकील अगर क़ानून जानता हो लेकिन नैतिकता न हो, तो वह अन्याय को भी सही साबित कर सकता है।
संस्कार बच्चों को भीतर से मज़बूत बनाते हैं, ताकि वे कठिन परिस्थितियों में भी सही निर्णय ले सकें।
संस्कार केवल पाठ्यपुस्तकों से नहीं आते — वे वातावरण से आते हैं। माता-पिता और शिक्षक दोनों ही बच्चों के पहले आदर्श होते हैं। घर में बुज़ुर्गों का सम्मान, सच्चाई का साथ, समय की कद्र — ये सब छोटे-छोटे व्यवहार बच्चों में गहराई से उतरते हैं।
विद्यालयों को चाहिए कि वे मूल्य-आधारित शिक्षा (value-based education) को अपने पाठ्यक्रम में स्थान दें। कहानियों, उदाहरणों और गतिविधियों के माध्यम से नैतिक मूल्यों की शिक्षा देना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
बच्चे केवल घर और स्कूल से ही नहीं सीखते, वे समाज से भी प्रभावित होते हैं। आज के समय में जब सोशल मीडिया, टीवी और फ़िल्मों का प्रभाव बहुत गहरा है, तो हमें यह सोचना होगा कि हम उनके सामने किस तरह की भाषा, आचरण और आदर्श प्रस्तुत कर रहे हैं।मीडिया को चाहिए कि वह बच्चों के लिए सकारात्मक और प्रेरणादायक सामग्री प्रसारित करे।
हमारे देश की असली पूंजी उसकी युवा पीढ़ी है। यदि हम चाहते हैं कि भविष्य उज्ज्वल हो, तो हमें बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ संस्कारों की भी मजबूत नींव देनी होगी। किताबें उन्हें परीक्षा में सफल बना सकती हैं, लेकिन संस्कार उन्हें जीवन की परीक्षा में विजयी बनाएँगे।
नेहा वार्ष्णेय (लेखिका)
दुर्ग छत्तीसगढ़