भावों का समंदर’ 

पुस्तक समीक्षा

भावों का समंदर’

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युवा कवियित्री अमिता गुप्ता ‘नव्या’ का एकल काव्य संग्रह ‘भावों का समंदर’ एक सुखद अनुभूति कराने जैसा है। लेखिका की कलम से….’नव्या’ अपनी लेखन यात्रा के बारे में बताती हैं कि “भावों की सरिता कब अभिव्यक्ति का माध्यम बन जाए, हमें भी पता नहीं होता।” विद्यालय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिताओं में भाग लेने में रुचि, मातृभाषा हिंदी से जुड़ाव और अभिव्यक्ति की रुचि उन्हें प्रिय, सरल और सहज लगती थी।लेखिका के विचारों /भावों में आत्मीयता का संवेग प्रवाहमयी प्रतीत होता है। संग्रह को बाबा जी स्व. भगौती प्रसाद गुप्ता को समर्पित कर उनकी स्मृतियों को सहेजने की कोशिश भावुक करती प्रतीत होती है।

नमन/ वंदन में माता-पिता के प्रति आत्मस्वीकृति – मैं आप दोनों की लिखावट हूँ, आप दोनों पर कुछ भी लिख पाऊँ मैं न- एक बेटी का माता पिता प्रति हृदयस्पर्शी आत्म अभिव्यक्ति है। शुभकामना संदेशों की श्रृंखला के बाद लेखिका का परिचय मन मोहने वाला है।

विविध विषयों/विधाओं से सुसज्जित प्रस्तुत काव्य संग्रह का मुख्यपृष्ठ मोहक होने के साथ संग्रह के नाम को सार्थक करता है।

नव्या ने अपने प्रस्तुत संग्रह में हाइकु, सायली, दोहे, छंदबद्ध रचनाओं और गीतों को सहेजकर पाठकों के बीच रखने का सुंदर प्रयास किया है। नं

लेखिका के भावों विचारों में आभार धन्यवाद कृतज्ञता के बीच आत्मीयता का संवेग प्रवाह शीतलता प्रदान करता है। संग्रह को बाबा जी स्व. भगौती प्रसाद गुप्ता को समर्पित कर उनकी स्मृतियों को सहेजने की कोशिश भावुक करती प्रतीत होती है। नमन/ वंदन में माता-पिता के प्रति आत्मस्वीकृति – मैं आप दोनों की लिखावट हूँ, आप दोनों पर कुछ भी लिख पाऊँ मैं न- एक बेटी का माता पिता प्रति हृदयस्पर्शी आत्म अभिव्यक्ति है। शुभकामना संदेशों की श्रृंखला के बाद लेखिका का परिचय मन मोहने वाला है।

कोरोना काल में लाकडाउन के दौरान लेखन को मिली दिशा की स्वीकारोक्ति के साथ 72 कविताओं के प्रस्तुत काव्य संग्रह की शुरुआत गजानन गणपति से होकर ‘भावों का समंदर’ पर जाकर विराम देता है।

 

गजानन गणपति में लेखिका ने अपने अंतर्मन के भावों को कुछ इन शब्दों में व्यक्त किया है-

भाद्रपद चतुर्थी तिथि आई, गजानन अनुपम छवि मन भाई।

हे विघ्न-विनाशक मंगल कर्ता, संग रिद्धि सिद्धि आई।।

 

‘सर्वस्व तुझे अर्पण है’ की भाव भंगिमा उच्चतम शिखर की ओर प्रतीत होती है –

जीवन नौका भंवर में,करते भव सागर पार।

सर्वस्व तुमको अर्पण है, जग के पालनहार।।

 

बेटियों के बारे में नव्या कहती हैं –

दें मान और सम्मान, भेदभाव न हम करें।

पुलकित उमंगें बेटियों की, उड़ान हौंसले भरें।

 

जग में मिशाल अरुणिमा सिन्हा हौसलों की नई परिभाषा गढ़ती प्रतीत होती हैं –

माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई चढ़कर, नया इतिहास रच दिया।

दिव्यांगता नहीं अभिशाप कोई, समाज में मिसाल कायम किया।

 

कृषक में कृषकों के जीवन का चित्र खींचते हुए नव्या की पंक्तियां झकझोरती हैं –

सर्दी, गर्मी मार, जीवन में संकट लगे।

जीवन जाते हार, मृत्यु गले उनके लगे।

 

हाइकु और सायली छंदों की विविधतापूर्ण रचनाएं मन मोहने वाली हैं।

 

आंग्ल नववर्ष को शब्दों से सुसज्जित करते हुए नव्या कहती हैं –

संस्कृति का विस्तार हो, मिले मान- सम्मान।

वसुधैव कुटुंबकम् का भाव हो बढ़े हमारी शान।

 

भूल शीर्षक में सीख देती पंक्तियाँ युवा चिंतन की गंभीरता को परिलक्षित करती हैं –

होती हैं कुछ गलतियां, जीवन में हर बार।

आदत से न शुमार हो, समझो इसका सार।।

 

संग्रह की अंतिम रचना भावों का समंदर से अठखेलियाँ करता आभास कराता है -भावों का समंदर उठता मन में

मन उमंग उल्लासित हिलोर भरता,

सुखमय अनुपम अनुभूति मिलती

मानस पटल संतृप्त करता।।

 

संग्रह की रचनाएं स्वयं से, आपसे, समाज , तीज, त्योहार, संस्कृति, संस्कार से संवाद करने, कराने जैसा बोध कराते हैं, लेखिका प्रस्तुत संग्रह के साथ आम जनमानस से सीधे जुड़ने की उत्सुकता का आभास कराती है।

बतौर पाठक मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि बतौर युवा लेखिका प्रस्तुत संग्रह को उज्जवल साहित्यिक भविष्य का सुखद संकेत आश्चर्यजनक नहीं है,।समय/अनुभव के साथ एक रचनाकार निरंतर बेहतर…. और बेहतर का सतत् प्रयास जारी रखता ही है।

प्रस्तुत संग्रह की स्वीकार्यता के साथ नव्या के सुखद उज्जवल भविष्य की कामना, प्रार्थना, स्नेहिल आशीष के साथ…….।

 

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

गोण्डा उत्तर प्रदेश