ओ३म्
‘श्री मद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, पौंधा-देहरादून के रजत जयन्ती वर्ष में इससे जुड़ी हमारी कुछ स्मृतियां’
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श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल पौंधा-देहरादून की स्थापना पच्चीस वर्ष पूर्व जून, 2000 में हुई थी। आगामी जून 2025 में पच्चीस वर्ष पूर्ण होने पर गुरुकुल अपनी स्थापना का रजत जयन्ती समारोह आयोजित कर रहा है। हम गुरुकुल की स्थापना से ही इससे जुड़े रहे हैं। हमने पच्चीस वर्षों में गुरुकुल की यात्रा को अपने चर्म चक्षुओं से देखा है और हमें सन्तोष है कि गुरुकुल ने अपनी यात्रा के पच्चीस वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। हम आशा करते हैं कि आगामी वर्षों में गुरुकुल अपने पुराने कीर्तिमानों को कायम रखते हुए नये कीर्तिमान स्थापित करेगा। गुरुकुलों से ही आर्यसमाज को वेदों एवं वैदिक साहित्य के विद्वान मिलते हैं जिससे आर्यसमाज का प्रचार-प्रसार वैदिक सिद्धान्तों की रक्षा करते हुए आगे बढ़ता है। वर्तमान में गुरुकुल में लगभग 125 ब्रह्मचारी आर्ष व्याकरण सहित सीबीएसई पाठ्यक्रम से अपना अध्ययन कर रहे हैं। हम इन सभी ब्रह्मचारियों से आशा करते हैं कि वह सब अपने जीवनकाल में आर्यसमाज से सक्रियता से जुड़े रहेंगे और आर्यसमाजों में अपनी विद्या एवं वाग्मिता से उपदेश व प्रवचनों से सहयोग करते रहेंगे जिससे सन् 2076 में आर्यसमाज के 200 वर्ष पूर्ण होने पर आर्यसमाज अधिकारी विद्वानों की संख्या एवं सदस्यों की संख्या में वृद्धि को प्राप्त होकर विश्व में अपनी पहचान को और अधिक ग्राह्य एवं स्वीकार्य बना सके।
माह जून, 2000 में गुरुकुल पौंधा की स्थापना के समय गुरुकुल व इसके आसपास की भूमि पूरी तरह से सुनसान एवं चहुंओर ऊंचे-ऊंचे वृक्षों से आच्छादित थी। गुरुकुल के चारों ओर लगभग 1 किमी. क्षेत्र में मनुष्यों के निवास नहीं बने थे। अब 25 वर्ष व्यतीत होने पर कुछ कुछ दूरी पर निवास व कार्यालय आदि बने दिखाई देने लगे हैं। स्थापना के समय स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने, जो उन दिनों आचार्य हरिदेव जी के नाम से जाने जाते थे, यहां पहुंच कर गुरुकुल की स्थापना की थी। गुरुकुल के लिये भूमि के दाता स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के सुपुत्र श्री कान्त वर्मा जी थे। आचार्य के रूप में आचार्य भीमसेन शास्त्री जी और आचार्य युधिष्ठिर जी के साथ लगभग 7-8 ब्रह्मचारी यहां दिल्ली के गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली से लाये गये थे। इस गुरुकुल का आचार्य एक 20 वर्षीय युवक महाराष्ट्र के भण्डारा निवासी स्वनाम धन्य ‘‘धनंजय आर्य जी” को बनाया गया था। आचार्य एवं ब्रह्मचारियों के लिए एक अस्थाई निवास वा टीनों की छत से युक्त एक कमरा बना कर उसी में सब लोग रहा करते थे। यज्ञ के लिये घास-फूस की एक वृहत यज्ञशाला बनाई गई थी जिसमें चतुर्वेद पारायण यज्ञ किया गया था। जल एवं विद्युत की भी व्यवस्था आरम्भ के दिनों में गुरुकुल परिसर में नहीं थी। वनों से घिरा होने के कारण गुरुकुल के प्रांगण में वन्य जीवों सहित सर्प आदि के यदा कदा दर्शन आचार्यों एवं ब्रह्मचारियों को होते रहते थे। गुरुकुल की स्थापना के साथ ही एक विशाल एवं भव्य यज्ञशाला एवं ब्रह्मचारियों के लिए छात्रावास सहित आवश्यक आवासीय भवनों के निर्माण की रूप रेखा स्वामी प्रणवानन्द जी ने तैयार की और उसे वित्तीय साधनों से पोषित किया। आचार्य धनंजय जी ने भवनों के निर्माण सहित बालकों के अध्ययन को आगे बढ़ाया और ब्रह्मचारियों को भोजन एवं अध्ययन में किसी प्रकार की बाधायें नहीं आने दी। वर्तमान में यहां एक तीन मंजिला भव्य एवं विशाल वेदभवन, वृहद यज्ञशाला, स्वागत-कक्ष, अध्ययन कक्ष, वृहद पुस्तकालय, भोजनशाला, छात्रावास, अतिथियों के लिए तीन कुटियायें, गोशाला सहित गुरुकुल की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये ट्यूबवेल वा पानी की ऊंची टंकी है। योग्य आचार्यों, ब्रह्मचारियों तथा गुरुकुल के स्वच्छ एवं सुरम्य वातावरण का प्रभाव यह रहा कि यहां योग्य ब्रह्मचारी विद्यास्नातक बनें जिन्होंने स्थानीय एवं दक्षिण भारत के तिरुपति बाला जी मन्दिर ट्रस्ट सहित देश के अनेक भागों में जाकर अष्टाध्यायी एवं व्याकरण विषयक प्रतियोगिताओं में भाग लेकर लोगों से अपनी स्मरण शक्ति एवं ज्ञान का लोहा मनवाया और वहां संस्कृत व्याकरण प्रतियोगिता में एक साथ स्वर्ण, रजत एवं ताम्र पदकों को प्राप्त किया। आज भी गुरुकुल के ब्रह्मचारी स्थानीय व राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतियोगिताओं में स्वर्ण व रजत पदक लाने की परम्परा को बनाये रखे हुए हैं। गुरुकुल में जो योग्य ब्रह्मचारी तैयार हुए हैं उनमें से कुछ प्रमुख नाम आचार्य डा. रवीन्द्र कुमार शास्त्री, आचार्य डा. अजीत कुमार शास्त्री दिल्ली, आचार्य डा. शिवकुमार वेदि, आचार्य डा. शिवदेव आर्य शास्त्री आदि हैं। गुरुकुल के ही एक स्नातक श्री दीपक कुुमार ने विद्या प्राप्त करने सहित खेलों में ही उच्च स्थान अर्जित किया है। उन्होंने भारतीय वायु सेना में नियुक्त होकर एशियन खेलों में ़शूटिंग में रजत पदक लेकर देश को गौरव प्रदान किया है। इसके बाद उनका ओलम्पिक खेलों के लिए चयन हुआ था परन्तु यहां वह पदक प्राप्त करने में सफल नहीं हो सके। गुरुकुल में प्रतिभा विकास की दृष्टि से अनेक ऐसे स्नातक भी हैं जिन्होंने यूजीसी की नैट परीक्षा उत्तीर्ण की है। इस परीक्षा को उत्तीर्ण कर किसी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर पर कार्य करने की अर्हता प्राप्त हो जाती है। इसके अतिरिक्त नैट उतीर्ण परीक्षार्थी अपने किसी विषय में रिसर्च हेतु सरकारी सहायता प्राप्त कर अनुसंधान व शोध कर पीएचडी की उपाधि भी प्राप्त कर सकते हैं। विगत 25 वर्षों में गुरुकुल के अनेक विद्यार्थियों ने पी.एच-डी. की शोधापाधियां भी प्राप्त की हैं। यह भी गुरुकुल की उपलब्धियां हैं। इस कारण से गुरुकुल का भविष्य में पोषण एवं संचालन आवश्यक है जिससे यहां वैदिक विद्वान तैयार हों जो उच्च कोटि का वैदिक साहित्य तैयार करने सहित देश देशान्तर में वेद प्रचार में समर्थ हों। गुरुकुल ने अपने परिसर में अनेक बार आर्य वीर दल के प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के शिविरों का आयोजन भी किया है। गुरुकुल के द्वारा अतीत में देश के सभी गुरुकुलों का एक सफल गुरुकुल सम्मेलन भी आयोजित किया था। अन्य अनेक विषयों पर समय समय पर गोष्ठियां एवं सम्मेलन भी गुरुकुल में आयोजित किये हैं जिसमें विषय के अधिकारी विद्वानों को बुलाकर श्रोताओं को उनके ज्ञान एवं अनुभवों से लाभान्वित किया है।
गुरुकुल की स्थापना से अब तक प्रत्येक वर्ष गुरुकुल का वार्षिकोत्सव सोल्लास सम्पन्न होता रहा है जिसमें प्रायः किसी एक वेद से वेदपारायण यज्ञ सम्पन्न किया जाता है। इन उत्सवों में आर्यजगत के विख्यात विद्वान भी उपदेश के लिये आते हैं। हम ऐसे सभी आयोजनों में सम्मिलित होते रहे हैं। हमने गुरुकुल के उत्सवों में आये प्रायः सभी विद्वानों को एक श्रोता के रूप में सुना है। हमने गुरुकुल में आचार्य पं. राजवीर शास्त्री सम्पादक दयानन्द-सन्देश, डा. रघुवीर वेदालंकार जी, डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री जी, आचार्य वेदप्रकाश श्रोत्रिय जी, डा. सोमदेव शास्त्री मुम्बई, डा. धर्मवीर जी अजमेर, आचार्य बालकृष्ण – पतंजलि योगपीठ, स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती, आचार्य आशीष दर्शनाचार्य, डा. महावीर अग्रवाल, डा. दिेनेश शास्त्री, डा. रूपकिशोर शास्त्री,, पं. धर्मपाल शास्त्री मेरठ, डा. सूर्यादेवी चतुर्वेदा जी, आचार्या अन्नपूर्णा जी, पं. ओम्प्रकाश वर्मा, पं. सत्यपाल पथिक, पं. सत्यपाल सरल, पं. नरेश दत्त आर्य, श्री कैलाश कर्मठ, श्री कुलदीप आर्य आदि अनेक विद्वानों को देखा व सुना है। अतिथियों के निवास एवं भोजन आदि की सभी व्यवस्थायें उत्तम होती हैं। तीन दिन का उत्सव अतिथियों विद्वानों के उपदेश श्रवण सहित ऋषि भक्तों से मिलने का एक अवसर देता है। इसके साथ ही यहां उत्सव पर आने वाले आर्य साहित्य के पुस्तक विक्रताओं से पुस्तकें एवं यज्ञ में उपयोगी यज्ञकुण्ड एवं अनेक आवश्यक वस्तुओं आसन व यज्ञपात्रों को क्रय करने की सुविधा भी सुलभ होती है। हमने यहां आये प्रायः सभी आर्यजनों को आयोजन में विद्वानों व भजनोपदेशकों के गीतों को सुनकर सन्तुष्ट एवं प्रसन्न देखा है। गुरुकुल ने अपने आयोजनों को घर-घर पहुंचाने की दृष्टि से पिछले 10 वर्ष से अधिक समय से इसके सभी कार्यक्रमों को अपने यूट्यूब चैनल Gurukul Pondha Dehradun सहित फेस बुक पेज Gurukul Pondha Dehradun से लाइव प्रसारित करने की व्यवस्था भी की हुई है। इससे आयोजन में न पहुंच सकने वाले गुरुकुल प्रेमी देश विदेश में अपने घरों में बैठ कर सभी कार्यक्रमों को देख व सुन सकते हैं। आज के युग में यह एक बहुत बड़ी सुविधा है। हम भी इसका उपयोग करते हैं और सभी आर्य संस्थाओं यथा टंकारा व अन्य स्थानों पर होने वाले वृहद आर्य महासम्मेलनों आदि के लाइव प्रसारणों से लाभान्वित होते हैं।
हमें स्मरण है कि गुरुकुल की सन् 2000 में स्थापना होने के बाद से वर्ष 2018 तक हम गुरुकुल के आचार्य धनंजय जी के साथ गुरुकुल के उत्सव के निमन्त्रण देने मई महीने की गर्मी के दिनों में देहरादून के अपने सभी परिचित आर्य सज्जनों के परिवारों में स्कूटर पर बैठकर जाया करते थे। हमें एक आर्यसमाज के विद्वान श्री चण्डी प्रसाद ममगांई शर्मा जी का नाम याद है जिनका एक लेख ऋषि दयानन्द के जीवन एवं कार्यों पर वेदवाणी के ऋषि दयानन्द के जीवन विषयक दुर्लभ सामग्री के विशेषांक में प्रथम स्थान पर छपा था। वह ऋषि दयानन्द के भक्त थे और ऋषि जन्मभूमि टंकारा के निकट के स्थानों पर वर्षों तक रहे थे। उन्हें ऋषि के घर से निकलने से लेकर पूरे जीवन का घटनाचक्र स्मरण था। वह गुजरात के टंकारा के निकटवर्ती स्थानों पर खुद भी पैदल घूमे थे। आचार्य धनंजय जी प्रत्येक वर्ष इनके निवास पर जाकर इन्हें गुरुकुल के उत्सव में आने के लिए आमंत्रित करते थे। इनसे गुरुकुल के लिये दान भी मिलता था। यह अपनी अधिक आयु एवं साधनों के अभाव के कारण कभी गुरुकुल आ नहीं सके। देहरादून की किसी आर्यसमाज में भी नहीं गये थे। यदि हमने वेदवाणी में इनका लेख न पढ़ा होता तो हम भी इनके कभी दर्शन न कर पाते। वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून ने कई वर्ष पहले हमारे निवेदन पर इनका सम्मान किया था। तब हमारे अनेकानेक आग्रहों के कारण श्री चण्डी प्रसाद शर्मा जी आश्रम आये थे। ऐसे अनेक लोग देहरादून में रहे हैं जिनके दूरस्थ निवासों पर हम आचार्य धनंजय जी के साथ जाकर उनसे उत्सव में सम्मिलित होने का आग्रह करते थे और वह उत्सव में आते भी थे। ऐसे ही वृद्ध ऋषिभक्तों में कर्नल राम कुमार आर्य, श्री दौलत सिंह राणा एवं श्री विनय मोहन सोती जी भी थे। कर्नल राम कुमार आर्य जी ने तो अपने लिये एक कुटिया भी गुरुकुल परिसर में बनवाई थी जिसमें वह उत्सव के दिनों में आकर अन्य विद्वानों के साथ रहते थे। हमें यह भी अवसर मिला की गुरुकुल के प्रथम उत्सव से लेकर वर्ष 2018 के उत्सवों तक हमने उत्सवों में जो देखा व सुना था उन समाचारों का संकलन कर इसे सोशल मीडिया सहित आर्यसमाज की पत्र-पत्रिकाओं को प्रकाशनार्थ प्रेषित करते रहे। हमारे प्रेषित सभी समाचार अनेक सोशल मीडिया से जु़ड़ी साइटों पर भी प्रकाशित होते रहे हैं जो वर्तमान में भी वहां पर उपलब्ध हैं ऐसा हमारा अनुमान है। स्थानीय समाचार पत्रों में भी हमारे समाचार व लेख प्रकाशित होते रहे।
गुरुकुल पौंधा ने अपने 25 वर्षों के कार्यकाल में आशातीत उन्नति की है। इसका समस्त श्रेय स्वामी प्रणवानन्द सहित आचार्य धनंजय जी व उनकी गुरुकुल की टीम सहित आर्यसमाज के स्थानीय व देश विदेश के दानी महानुभावों को हैं। हम गुरुकुल की उन्नति में सहायक बने गुरुकुल प्रेमी सभी बन्धुओं को भी नमन करते हैं। हम आशा करते हैं कि गुरुकुल में भावी समय में व्याकरण एवं वेदों के अधिकारी विद्वान बनेंगे जो आर्यसमाज के वेद प्रचार मिशन को आगे बढ़ायेंगे जिससे गुरुकुल के यश एवं सार्थकता में वृद्धि होगी। ईश्वर से प्रार्थना है गुरुकुल आगामी वर्षों में पहले से भी अधिक उन्नति करे जिससे स्वामी प्रणवानन्द जी, आचार्य धनंजय जी, सभी आचायों एवं भूमिदाता श्री कान्त वर्मा जी का स्वप्न साकार हो सके। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य