लखनऊ, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में दिनांक 9 अप्रैल को छात्र कल्याण अधिष्ठाता टीम की ओर से शैक्षणिक सत्र 2024-25 के नव प्रवेशित पीएचडी विद्यार्थियों के लिए रिसर्च ओरियेंटेशन कम इंटरेक्शन प्रोग्राम का आयोजन किया गया। यह आयोजन विश्वविद्यालय परिसर में कुलपति नव्व प्रो. राज कुमार मित्तल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन एवं भारत रत्न बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया। आयोजन समिति की ओर से कुलपति सहित सभी शिक्षकों को पौधा भेंट कर उनका स्वागत किया गया। छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. नरेंद्र कुमार ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम के उद्देश्य व रूपरेखा से अवगत कराया। मंच संचालन का कार्य डॉ. मोनिका शर्मा द्वारा किया गया।इस अवसर पर कुलपति नव्व प्रो. मित्तल ने शोधार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि शोध के माध्यम से समाज और मानवता के कल्याण की दिशा में सार्थक योगदान दिया जा सकता है। उन्होंने वैज्ञानिक शोध और सामाजिक विज्ञान शोध के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि वैज्ञानिक शोध नवाचार का माध्यम बनता है, जबकि सामाजिक शोध समाज को बेहतर ढंग से समझने और उसमें सुधार लाने का मार्ग प्रशस्त करता है।कुलपति ने पीएचडी विद्यार्थियों को एक नई पहल के अंतर्गत विश्वविद्यालय में प्रवेश के समय एक पौधा लगाने और शोधकाल के दौरान उसकी देखभाल करने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि शोध पूरा करने के बाद शोधार्थी अपनी थीसिस में उस पौधे की जियोटैग फोटो संलग्न करें। उन्होंने शोध में नैतिकता, पारदर्शिता, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सामाजिक सरोकार की अनिवार्यता पर विशेष बल दिया।डीन ऑफ अकेडमिक अफेयर्स प्रो. एस. विक्टर बाबू ने शोध प्रक्रिया के विभिन्न चरणों जैसे विषय चयन, साहित्य समीक्षा, डेटा संग्रह, विश्लेषण और निष्कर्ष की सटीकता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने शोध को ज्ञान प्राप्ति का सशक्त माध्यम बताया।छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. नरेंद्र कुमार ने विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर अब तक की शैक्षणिक यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 1996 में स्थापित इस संस्थान ने अल्प समय में महत्वपूर्ण उपलब्धियां अर्जित की हैं। उन्होंने नैक, एनआईआरएफ सहित विभिन्न शैक्षणिक रैंकिंग में विश्वविद्यालय की स्थिति की जानकारी दी और शोधार्थियों को उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं।रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेल के निदेशक प्रो. शिशिर कुमार ने शोध को तार्किक, सामाजिक एवं मानसिक विकास का आधार बताते हुए विविध शोध विधाओं के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने इसे ज्ञान के निरंतर विकास की प्रक्रिया बताया।कार्यक्रम के दौरान विभिन्न विद्यापीठों के संकायाध्यक्षों ने अपने-अपने विभागों की जानकारी साझा की और शोधार्थियों का मार्गदर्शन किया। अंत में डॉ. तरुणा द्वारा धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया गया।इस अवसर पर प्रो. शरद सोनकर, प्रो. दीपा राज, डॉ. तरुणा, डॉ. पवन कुमार चौरसिया, डॉ. जवाहरलाल जाट, डॉ. शिवशंकर यादव, डॉ. राजेश सिंह सहित विभिन्न विभागों के शिक्षक, विभागाध्यक्ष एवं शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।