ग़ज़ल
अंधेरा दिल का मिटाने को ईद आई है ।
चमन में फूल खिलाने को ईद आई है।।
महीने भर की दुआएं कबूल हो जाएं।
ख़ुदा से ख़ुद को मिलाने को ईद आई है।।
वो चांद जिससे कभी आंख मिल नहीं पाई।
उसी से आंख मिलाने को ईद आई है।।
हुए हैं दूर जो तुमसे किसी भरम के तहत।
उन्हें क़रीब बुलाने को ईद आई है।।
किसी का दर्द मिटाओ उसे खुशी दे दो।
ये एक बात बताने को ईद आई है।।
ग़मों की जद से निकल आओ आंखें बंद करो।
सुनहरे ख्वाब दिखाने को ईद आई है।।
दिलो दिमाग़ से जो दूर था ज़माने से।
उसी की याद दिलाने को ईद आई है।।
विनोद उपाध्याय हर्षित