

अनुराग लक्ष्य, 28 मार्च
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता ।
,,,अदब की महफिलों में जब ग़ज़ल यह मुस्कुराती है, हर इक दिल में वफ़ा और प्यार की शम्माँ जलाती है। ग़ज़ल इस जिंदगी की भीड़ में राहत का सामाँ है, वफा की चाँदनी बनकर हमें अक्सर लुभाती है । आज इस ख़बर को लिखते हुए मैने उपरोक्त चार पंक्तियों का सहारा इस लिए लिया कि जिस एल्बम ,मुहब्बत भी तुम्हीं से है शरारत भी तुम्हीं से है, का ज़िक्र करने जा रहा हूं वो पूनम विश्वकर्मा की ग़ज़ल और सत्यम आनंद जी के बेशकीमती मौसीकी का बेहतरीन तोहफा है। इस मुकाम पर पहुंच कर मैं सलीम बस्तवी अज़ीज़ी यही कहना चाहता हूँ कि,किसी के मदहोश कर देने वाले कलाम पर सुरमई शाम जैसी मौसीकी जब रक्स करती है तो ग़ज़लों की दुनिया में इंकलाब आ जाता है।
इस मुकाम पर आते हुए संगीतकार गायक सत्यम आनंद जी ने ग़ज़लों की रूह तक पहुंचने वाली शाइरा पूनम विश्वकर्मा की ग़ज़ल को अपनी मौसीकी और गायिकी से जो ऊंचाई प्रदान की है, वोह रहती दुनिया तक क़ायम ओ दायम रहेगी। खासकर पूनम विश्वकर्मा की ग़ज़ल का मिसरा , तुम्हीं से हिज़्र समझा है तुम्हीं से वस्ल जाना है, गाते हैं तो बेहतरीन अदायगी के साथ ग़ज़लों के बेहतरीन गायक जगजीत सिंह के क़रीब दिखाई देते हैं। अंत में सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि एक नायाब बेमिसाल और बेशकीमती एल्बम के लिए शाइरा पूनम विश्वकर्मा और सत्यम आनंद जी की जितनी भी तारीफ की जाए वोह कम है। क्योंकि ग़ज़ल जब भी दर्द और कर्ब के रेगिस्तान से गुज़रती हुई मुहब्बत के गुलिस्ताँ में क़दम रखती है तो पूनम विश्वकर्मा के जज़्बाती समंदर से इस तरह के मयारी कलाम दुनिया में रूबरू हो ही जाते हैं।