उरई 24 जुलाई। मातृ शिशु स्वास्थ्य और परिवार की खुशहाली में नियोजित परिवार की अहम भूमिका है, लेकिन इसका जिम्मा सिर्फ आधी आबादी के कंधों पर डाल दिया गया है। इस चलन को बदलना होगा। नियोजित और स्वस्थ परिवार के लिए पुरूष को भी अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए आगे आना होगा। इसी सोच को साकार करने के लिए इन दिनों सोशल मीडिया पर बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की तरफ से ‘‘मर्द भी बने जिम्मेदार’’ हैशटैग के साथ अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें दावा किया गया है कि देश में 35 फीसदी भारतीय पुरूष गर्भनिरोधन को महिला की ही जिम्मेदारी मानते हैं। जिले में परिवार कल्याण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ एसडी चैधरी का कहना है कि पुरूष भागीदारी के दोनों साधन कंडोम और नसबंदी महिला द्वारा अपनाए जाने वाले साधनों की तुलना में अधिक सुरक्षित व प्रभावी हैं।
डॉ. चैधरी ने बताया कि पुरूष भागीदारी बढ़ाने के लिए नवदंपति को दिये जाने वाले शगुन किट में कंडोम भी दिये जाते हैं। कंडोम न केवल परिवार नियोजन में अहम भूमिका निभा रहे हैं, बल्कि इनसे यौन रोगों से भी बचाव होता है। शादी के बाद आशा कार्यकर्ता नवदंपति को प्रेरित करती हैं कि पहला बच्चा शादी के दो साल बाद ही करना है और दो बच्चों में तीन साल का अंतर भी बना रहे। पहले बच्चे में देरी और दो बच्चों में अंतर के लिए त्रैमासिक अंतरा इंजेक्शन, माला एन और कई बार इमर्जेंसी पिल्स का इस्तेमाल महिलाओं द्वारा किया जाता है जिससे कुछ हार्मोनल बदलाव होते हैं और महिला को थोड़ी बहुत परेशानी भी होती है। इसके सापेक्ष अगर पुरूष कंडोम का इस्तेमाल करें तो दंपति का जीवन खुशहाल रहेगा और किसी प्रकार की दिक्कत भी नहीं होगी। जिले के नौ ब्लॉक में स्वास्थ्य इकाइयों पर परिवार नियोजन बॉक्स हैं जहां पूरी गोपनीयता के साथ कंडोम ले सकतें हैं और किसी प्रकार की रोकटोक भी नहीं है।
जिला महिला अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. एमके वर्मा बताते हैं कि जिन दंपति द्वारा परिवार नियोजन के पारम्परिक साधनों पर जोर रहता है वहां अनचाहे गर्भ का खतरा ज्यादा होता है। ऐसी स्थिति में महिलाएं इमर्जेंसी पिल्स का इस्तेमाल करती हैं और विभाग यह सुविधा उपलब्ध भी कराता है, लेकिन लगातार कई बार इस दवा का इस्तेमाल करने से महिला के शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सुरक्षित और कारगर त्रैमासिक अंतरा इंजेक्शन लगवाने पर महिला को माहवारी सम्बन्धित हार्मोनल बदलाव का सामना करना पड़ता है। आईयूसीडी और पीपीआईयूसीडी में भी महिलाओं को बदलाव की चुनौतियों से जूझना पड़ता है। इसके विपरीत अंतराल में भी पुरूष की भागीदारी सरल और सुरक्षित है ।
शहर के एक मोहल्ला निवासी मजदूर ने जिला अस्पताल में नसबंदी सेवा ली है। डॉ. एमके वर्मा ने उसकी नसबंदी की है। मजदूर ने बताया कि उसके चार बच्चे हैं। वह लेवर चैराहे पर मजदूरी करता है। सारथी वाहन से परिवार नियोजन सेवाओं की जानकारी मिली। जिला अस्पताल में आशा रामकुमारी ने उसकी काउंसलिंग की। गुरुवार को उसकी नसबंदी हुई। किसी तरह की समस्या नहीं हुई। जिले में वर्ष 2022-23 में 44 पुरुष नसबंदी हुई है। जबकि 6.13 लाख कंडोम