उन्मुक्त उड़ान मंच की संस्थापिका/अध्यक्षा डॉ दवीना अमर ठकराल देविका जी के नेतृत्व, सशक्त कार्यकारिणी के अतुलनीय सहयोग व सक्रिय सदस्यों की उल्लेखनीय सहभागिता से साप्ताहिक आयोजन की श्रृंखला में विषयः देश भक्ति एक संस्कार…आओ ले संकल्प देश हित में हो हमारा भी कुछ योगदान, सफल हुआ। आयोजन प्रभारी डॉ
अनीता राजपाल वसुंधरा जी ने अपनी भावाभिव्यक्ति विषय निरूपण में कुछ इस प्रकार दी- देशभक्ति एक ऐसी भावना है जो हमें अपने देश के प्रति गर्व और सम्मान की भावना से भर देती है। यह एक संस्कार है जो हमें अपने देश के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित करता है। हमें देशहित में कुछ संकल्प लेने चाहिए और अपना योगदान देना चाहिए। हमें अपने देश की सेवा के लिए कुछ करना चाहिए, चाहे वह बड़ा हो या छोटा। अपने ज्ञान, कौशल और संसाधनों का उपयोग कर देश हित में लगाना सच्ची देशभक्ति है। हमें अपने देश के नागरिकों के साथ मिलकर काम करना चाहिए और देश के विकास में योगदान देना चाहिए। अपने बच्चों में देशभक्ति के बीज बो देशहित में नन्ही पौध को तैयार करना अंत आवश्यक है क्योंकि आज का बच्चा ही कल का नेता है। देशहित सर्वोपरि है। देशभक्ति के संस्कार को अपने भीतर मज़बूत कर स्वहित को परे धकेलना अति आवश्यक है।देशभक्त केवल वो वीर जवान नहीं हैं जो सीमाओं पर तैनात रहते हैं। हर वो व्यक्ति जो हेराफेरी,भ्रष्टाचार इत्यादि विरोधी गतिविधियों से दूरी बनाते हुए सच्चाई, ईमानदारी व वफादारी से अपने काम में समर्पित है एक सच्चा देशभक्त है। शिक्षक हों चाहे वकील,डॉक्टर,इन्जीनियर,व्यापारी या किसान – अपने व्यवसाय में सत्यनिष्ठा से कार्यरत रहना सच्ची देशसेवा है। आज के समय की यह माँग है कि हम सब देशहित में अपना योगदान देने के लिए संकल्पित हों तभी हम देश की आज़ादी की ख़ातिर होने वाली अनगिनत शहादतों का क़र्ज़ चुका पाएँगे। अशोक दोशी, संजीव भटनागर, कुसुम लता, मंजी भाई, फूल चंद्र विश्वकर्मा, सुरेंद्र बिंदल, मीनाक्षी सकुमारन, डॉ पूनम सिंह, दिव्या भट्ट, संगीता चमोली वीना टंडन, नीरजा शर्मा ,नंदा बमराडा, अनु तोमर,स्वर्ण लता व डॉ सरोज १७ प्रबुद्ध साहित्य मनीषियों की सशक्त क़लम ने विषय को गहनता से भाव प्रदान कर विस्तार देकर विषय व आयोजन को सार्थक बनाया। उत्सवों को महोत्सव में बदलने की परिपाटी को क़ायम रखते हुए, आभासी कार्यशाला व वीडियो प्रस्तुति के माध्यम से ऋतुराज बसन्त के आगमन पर हर्षोल्लास से उन्मुक्त उड़ान मंच पर बसंतोत्सव मनाया गया। संरक्षिका डॉ स्वर्ण लता सोन, उपाध्यक्ष सुरेश चंद्र जोशी, सह अध्यक्षा डॉ अनीता राजपाल, कार्यकारी अध्यक्षा नीरजा शर्मा, समीक्षा प्रभारी अशोक दोशी, दैनिक आयोजन प्रभारी दिव्या भट्ट, मीडिया प्रभारी संजीव भटनागर व कृष्ण कान्त मिश्र, अभिकल्पक प्रभारी सुनील भारती आज़ाद व नीतु रवि गर्ग, विशेष आयोजन प्रभारी सुमन किमोठी, बिटिया एकता गुप्ता काव्या, बिटिया अमिता गुप्ता नव्या, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ फूल चंद्र विश्वकर्मा व डॉ नवीन जोशी नवल, डॉ पूनम सिंह, कुसुम लता,युद्धबीर बिष्ट, शिखा खुराना, रेखा पुरोहित, मीनाक्षी सकुमारन, डॉ मूरत सिंह यादव, आशा बुटोला, अनु तोमर, मंजुला सिन्हा,सरोज डिमरी,किरण भाटिया संगीता चमोली, डॉ पूर्णिमा पाण्डेय, नंदा बमराडा, कंचन वैभव वर्मा, नृपेंद्र चतुर्वेदी, रंजना बिनानी,डॉ राम कुमार झा निकुंज, आशा नेगी ने अब तुम आभासी कार्य शाला आयोजन वह मंच पर अपनी भावाभिव्यक्ति वीडियो के माध्यम से प्रेषित कर बसंतोत्सव को अविस्मरणीय बनाकर मंच पर बासंती बयार का प्रादुर्भाव किया।
रचनाकारों की भावाभिव्यक्ति इस प्रकार रही आयी छायी बसंत बहारें,मन में जगी एक आशा।
अशोक दोशी दिवाकर
किंचित ही कोई शेष है,प्राणियों में हर्ष उल्लास है। हर प्राण में नई श्वास है,नए युग का आभास है।।
दिव्या भट्ट ‘स्वयं’-आओ मिल फैलाएँ संदेश ये प्यारा, हरियाली का फैला रहे पसारा। डॉ.अनीता राजपाल ‘अनु’ वसुन्धरा -पीत वसन ओढ़ धारणी, पीत हुआ संसार,प्रिय वसंती आगमन, सृष्टि भी करे गुहार। डॉ पूनम सिंह ‘सारंगी’-देखो ऋतुराज बसंत चले आए हैं लेकर मां शारदे का
उत्सव कोटि कोटि करते नमन हम मां को मीनाक्षी सुकुमारन’मृदु’-
कृपा करो हे मातु शारदे, मुझको दो वरदान। धार कलम को देना माता, करूँ नित्य गुणगान। सुरेशचन्द्र जोशी ‘सहयोगी’-माँ सरस्वती के चरणों में, मेरा हो कोटि कोटि वंदन।भावों के पुष्प चढ़ाता हूँ, उससे करता माँ का अर्चन।। डॉ फूलचंद्र विश्वकर्मा भास्कर, मन उठती हिलोर,प्रफुल्लित कोर–कोर, रेखा पुरोहित ‘तरंगिणी’-आदिशक्ति मां शारदे करो तिमिर का नाश। हाथ जोड़ विनती करूं करो हृदय में वास ।संगीता चमोली ‘इन्दुजा’-अंत में सभी कर्तव्यनिष्ठ, प्रतिबद्धित, अनुशासित कर्तव्यपरायण, समर्पित व सक्रिय रचनाकारों का आभार प्रकट करते हुए डॉ अमर ठकराल देविका ने निम्न पंक्तियों से कार्यक्रम का समापन किया-देखे मन ने कितने पतझड़ अब मधुमास आया है,
अतृप्त अधरों पर मुस्कान का फूल खिलाया है।
प्रकृति स्वर्ण सुरा सी,चमकी प्राची चहुँ ओर,
उल्लसित, पुलकित, बासंती भोर हो आया है।
मादक,सुरभित,समीर, नवल भू यौवन सा भ्रमर ,
उपवन में खिलती कली,सौरभ की बौछार है।
भर उर में शरारत, ह्रदय में नवोन्मेष आसक्ति,
मुग्ध स्पंदित,देह-वीणा सी, गीत सुनाया है।
सृष्टि की रमणीक, तरंगिणी सी पर्व संध्या,
शशि का कर इन्तज़ार,माँगती रमणीयता है।
कत्थई कौपल,मद-मस्त अलसी,रस कलश,
प्रतीक्षा के दुःसह क्षण,खोलते मिलन द्वार हैं।
आम्र बौर मे भर स्वर्ण कण, बासुकी सौग़ात,
स्वर्ग -धरा का मिलन नीले अम्बर में आज है।