पं. सत्यपाल सरल जी की पावन स्मृति में रविवार दिनांक 2-2-2025 को सरल जी परिवार द्वारा देहरादून के आर्यसमाज लक्ष्मण- चौक में शान्ति यज्ञ का आयोजन किया गया। श्री सत्यपाल सरल जी दिनांक 27-1-2025 की सायंकाल मृत्यु हो गई थी। शान्ति-यज्ञ में सरल जी के परिवार के सभी सदस्य, संबंधी, मित्र एवं पड़ोसियों सहित आर्यसमाज देहरादून के अनेक सदस्य एवं आर्य भजनोपदेशक श्री नरेशदत्त आर्य, श्री सन्दीप आर्य, श्री भीष्म आर्य आदि सम्मिलित हुए। यज्ञ के ब्रह्मा देहरादून गुरुकुल पौंधा के आचार्य डा. धनंजय जी थे। आर्यसमाज लक्ष्मण- चौक के पुरोहित श्री गुरमीत सिंह जी ने भी यज्ञ में आचार्य धनंजय जी का सहयोग किया। मन्त्रपाठ गुरूकुल पौंधा के ब्रह्मचारियों ने किया। शान्ति यज्ञ में शान्ति प्रकरण के सभी 28 मन्त्रों से भी आहुतियां दी गईं। यज्ञ की पूर्णाहुति एवं आचार्य जी के सम्बोधन के बाद सामूहिक यज्ञ-प्रार्थना हुई जिसे सबने आर्य भजनोपदेशक श्री भीष्म आर्य जी के स्वरों में अपना स्वर देकर श्रद्धा के साथ गाया।
यज्ञ में प्रवचन करते हुए आचार्य डा. धनंजय जी ने कहा कि संसार परिवर्तनशील है। संसार में प्रत्येक क्षण परिवर्तन हो रहा है। आचार्य जी ने सभी श्रोताओं को प्रेरणा की कि हमें सद्विचारों की वंशवल्ली बनाते रहनी चाहिये। उन्होंने कहा कि संसार में जो भी मनुष्य जन्म लेता है उसे एक दिन अवश्य जाना होता है। ठहराव जीवन का नाम नहीं है। गतिशीलता का नाम ही जीवन है।
आचार्य धनंजय जी ने कहा कि हमारे आदरणीय श्री सत्यपाल सरल जी ने वैदिक सिद्धान्तों के प्रचार व प्रसार को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया था। उन्होंने भजनो व गीतों के गायन के द्वारा लगभग 50 वर्षों तक आर्यसमाज की प्रशंसनीय सेवा की। उन्होंने नगर-नगर एव ग्राम-ग्राम में जाकर वेदों का प्रचार किया। सरल जी का यश एवं कीर्ति आज भी हमारे मध्य में विद्यमान है। आचार्य जी ने आगे कहा कि सरल जी ने अपने जीवन को सार्थक बनाने के साथ दूसरों के जीवन को भी सार्थक बनाया।
गुरुकुल पौंधा, देहरादून के आचार्य धनंजय जी ने कहा कि श्री सत्यपाल सरल जी की कीर्ति हमारे मध्य में विद्यमान है। उन्होंने सरल जी के परिवार के सदस्यों को प्रेरणा करते हुए कहा कि अपने परिवार से यज्ञ को मत जाने देना अर्थात् नियमित यज्ञ करते व कराते रहना। आचार्य जी ने सरल जी के दो पुत्र श्री अवनीश आर्य एवं नवनीत आर्य को कहा कि अपनी माता की सेवा पूरी निष्ठा व श्रद्धा से करना। इन्हें कभी कोई दुःख न हो। आचार्य जी ने आगे कहा कि यज्ञ करने से मनुष्य व उनके परिवार का जीवन सुखमय बनता है। आचार्य जी ने परिवार के सदस्यों को समय-समय पर आर्यसमाज के विद्वानों को घर में बुलाकर उनका सत्कार करने की भी प्रेरणा की। यज्ञ की समाप्ति पर शान्ति पाठ हुआ। इसके बाद लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। शान्ति यज्ञ में बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुष सम्मिलित हुए। यज्ञशाला एवं उसके बाहर का परिसर सरल जी के मित्रों एवं शुभ-चिन्तकों से पूरा भरा हुआ था। लगभग आधे घंटे के अन्तराल के पश्चात लगभग 1.30 बजे श्रद्धांजलि सभा आरम्भ हुई। इस श्रद्धांजलि सभा का विवरण हम पृथक से प्रस्तुत करेंगे। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य