कीर्तिशेष सत्यपाल सरल जी को श्रद्धांजलि- “हमारे श्रद्धास्पद ऋषिभक्त आर्य भजनोपदेशक श्री सत्यपाल सरल”

ओ३म्
-कीर्तिशेष सत्यपाल सरल जी को श्रद्धांजलि-
“हमारे श्रद्धास्पद ऋषिभक्त आर्य भजनोपदेशक श्री सत्यपाल सरल”
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निवेदनः- दिनांक 10-1-2017 को सरल जी पर लिखा अपना एक पुराना लेख कुछ संशोधनों के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं जिसमें उनसे एक भेंट में सुने कुछ संस्मरणों का उल्लेख है।
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देश के आर्य भजनोपदेशकों में एक प्रमुख नाम है श्री सत्यपाल सरल। आप देहरादून में निवास करते हैं और विगत 28 वर्षों से हमारे परस्पर मधुर एवं निकट संबंध हैं। जनवरी, 2017 को में वह इन्दौर के आर्ससमाज के उत्सव से लौटे थे। हम दिनांक 10 जनवरी, 2017 को सायंकाल उनके निवास पर अपने एक मित्र श्री राजेन्द्र कुमार, अधिवक्ता के साथ उनसे भेंट की थी और आर्यसमाज संबंधी गतिविधियों पर विस्तार से चर्चा की थी। परोपकारिणी सभा के पूर्व प्रधान कीर्तिशेष डा. धर्मवीर जी की चर्चा भी हुई थी। श्री सरल जी डा. धर्मवीर जी से परिचित होने के साथ दोनों ऋषि भक्तों के परस्पर गहरे मैत्री पूर्ण सम्बन्ध थे। सन् 2013 में डा. धर्मवीर जी आर्यसमाज धामावाला देहरादून के उत्सव में मुख्य वक्ता के रूप में पधारे थे। डा. धर्मवीर जी दर्शनों के प्रसिद्ध विद्वान पं. उदयवीर शास्त्री जी के परिवार से निकटता से परिचित थे। शास्त्री जी की एक पुत्री श्रीमती आभा सिंह देहरादून में हमारे ही मुहल्ले में हमसे लगभग 300 मीटर की दूरी पर रहती थी। डा. धर्मवीर जी उनसे मिलना चाहते थे अतः हम उन्हें साथ लेकर श्रीमती आभासिंह जी के घर गये थे। उसी दिन डा. धर्मवीर जी कुछ समय के लिए हमारे निवास पर भी आये थे। हमने पाया था कि उनका हृदय बहुत विशाल है। वह अपनी आलोचनाओं को भी नजर अन्दाज कर ऋषि भक्तों से प्रेमपूर्वक मिलते हैं। धर्मवीर जी के कहने से ही हमने सरल जी से बात की थी और डा. धर्मवीर जी और सरल जी की भी परस्पर बात कराई थी। बातचीत के अनुसार सरल जी को रात्रि के कार्यक्रम में आर्यसमाज आना था। उसी दिन रात्रि को डा. धर्मवीर जी का व्याख्यान समाप्त होने पर सरल जी व हम डा. धर्मवीर से आर्यसमाज में मिले थे। सरल जी के अनुसार डा. धर्मवीर जी की मृत्यु से आर्यसमाज की भारी क्षति हुई थी। उन जैसा विद्वान शायद अब आर्यसमाज में दूसरा नहीं है। वह ऐसे विद्वान थे जिन्होंने अपना निजी निवास तक नहीं बनवाया और अपना सारा समय व जीवन आर्यसमाज व परोपकारिणी सभा को ही समर्पित किया था। उनके द्वारा ऋषि उद्यान में जो कार्य चल रहे थे उनके जारी रहने व उनके अनुरूप नयी योजनाओं के क्रियान्वयन का कार्य अवरूद्ध हो गया लग रहा था।

सरल जी ने बताया कि मृत्यु से कुछ माह पूर्व वह और डा. धर्मवीर जी आर्यसमाज बीकानेर के वार्षिक उत्सव पर आमंत्रित थे। वहां पहुंचने पर दोनों को एक ही कमरे में ठहराया गया था। सरल जी ने बताया कि डा. धर्मवीर जी प्रतिदिन प्रातः 4ः00 बजे शय्या का त्याग कर देते थे। उठकर शौच जाते और फिर लगभग एक घंटा ईश्वरोपासना व ध्यान करते थे। इसके बाद वह एक घंटा आसन-प्रायाणाम आदि करते थे। इससे निवृत होने के बाद वह लगभग एक घंटा स्वाध्याय किया करते थे। स्वाध्याय के बाद वह अपनी डायरी खोलते और परोपकारिणी सभा व उनसे जुड़े जिन आर्य परिवारों के सदस्यों का उस दिन जन्मदिवस व विवाह की वर्षगांठ आदि हुआ करती थीं, उनको फोन करते थे। फोन पर वह पहले अपना संक्षिप्त परिचय देकर एक वेद मन्त्र बोलते, उसका अर्थ करते और फिर उन्हें अपनी शुभकामनायें एवं आशीर्वाद देते थे। वह उन्हें बताते थे कि उस दिन परोपकारिणी सभा के ऋषि उद्यान में भोजन उनके नाम से बनाया जा रहा है। इससे सभा को प्रति व्यक्ति इकयावन सौ रूपयों का दान प्राप्त हो जाता था जिससे सभा की गतिविधियां चला करती थीं। श्री सरल जी ने बताया था कि डा. धर्मवीर जी की इस दिनचर्या से उन्होंने भी बहुत कुछ सीखा था।

श्री सरल जी का मानना था कि यदि आचार्य धर्मवीर जी की पिलखुआ आर्यसमाज में उचित देखभाल व चिकित्या कराई गई होती तो हम सबके प्रिय आचार्य डा. धर्मवीर जी और अधिक समय तक हमारे बीच रहते। सरल जी ने पिलखुआ में उनके साथ जो हुआ उसका विस्तार से वर्णन किया था। उन्होंने बताया कि पिलखुआ में अन्तिम दो दिन वह न तो यज्ञ करा सके थे और न ही व्याख्यान दे सके थे। वहां उनकी उचित चिकित्सा नहीं कराई गई थी। स्वास्थ्य की बहुत ही खराब अवस्था में वह अजमेर पहुंच पाये थे जिसको याद कर भी मन दुखी होता है। शायद आर्यसमाज की यह इस प्रकार की पहली घटना थी। डा. धर्मवीर जी ने किसी तरह से अजमेर पहुंच कर वहां से ऋषि उद्यान और ऋषि उद्यान से अस्पताल जाते समय अपने साथियों को यह कहा था कि मैं ऋषि के मार्ग पर जा रहा हूं। इसमें उन्होंने अपनी भावी स्थिति का संकेत कर दिया था। इस भेंट में सरल जी ने धर्मवीर जी की अन्य अनेक प्रेरणादायक बातों का उल्लेख किया था। हमने सरल जी को हिण्डोन सिटी और उदयपुर के सत्यार्थ प्रकाश न्यास में भी सन् 1997 में सुना है। देहरादून में गुरुकुल पौंधा सहित आर्यसमाज लक्ष्मण चैक, वैदिक साधन आश्रम तपोवन, आर्यसमाज प्रेमनगर, देहरादून तथा द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल के उत्सवों में उनके ईश्वर, वेद व ऋषि भक्ति के सुमधुर व मन को झकझोरने वाले गीतों व भजनों को भी सुना है। देहरादून के कुछ निकटवर्ती स्थानों व गांवों आदि में आयोजित कार्यक्रमों में भी उनके भजनों के कार्यक्रमों में सम्मिति हुए हैं। यदा कदा कुछ कार्यक्रमों में उनके भजनों की रिकार्डिंगं भी की है।

पहले देहरादून में आर्यसमाज के अनेक विद्वान होते थे जो देश भर की आर्यसमाजों द्वारा आमंत्रित होते थे। वह उन आर्यसमाजों में जाकर वहां उपदेशों व प्रवचनों के द्वारा सेवा करते थे। इन नामों में हम पं. विश्वनाथ वेदोपाध्याय, पं. रूद्रदत्त शास्त्री, आचार्य बृहस्पति शास्त्री, डा. सत्यकेतु विद्यालंकार, डा. सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार, प्रा. अनूप सिंह आदि प्रमुख हैं। वर्तमान समय में देहरादून में पं. सत्यपाल सरल जी ही ऐसे एकमात्र विद्वान व भजनोपदेशक थे जिनकी मांग पूरे देश में की जाती है और आप अपना पूरा समय आर्यसमाज के प्रचार कार्यों के लिए देते हैं। देश भर में जानें के लिए आपको लम्बी-लम्बी रेल व बस यात्रायें करनी होती थी जिससे आपको शारीरिक कष्ट होना स्वाभिविक था। आप यह सब कष्ट सहते थे और ऋषि मिशन को सफल बनाने के लिए वेद प्रचार का कार्य कर रहे थे। हमारी दृष्टि में श्री सत्यपाल सरल देहरादून के सभी आर्यसमाजों के गौरव थे, सबके स्तुत्य एवं पूजनीय थे।

श्री सत्यपाल सरल जी आर्यसमाज के बहुत प्रभावशाली भजनोपदेशक थे। आप ने ऋषि ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया हुआ था। आपके भजन व उपदेश दोनों ही बहुत प्रभावशाली होते हैं। हम इसे अपना सौभाग्य मानते हैं कि हमारे उनसे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रहे। उनके सभी पारिवारिक कार्यों में भी हमें सम्मिलित होने का अवसर मिलता रहा। कुछ वर्ष पूर्व जब अखिल भारतीय आर्य भजनोपदेशक परिषद् का गठन हुआ था तो उसमें आपकी प्रमुख भूमिका थी। देहरादून में आप अपनी धर्म पत्नी, दो पुत्रों व उनके परिवारों सहित निवास करते रहे। परिवार के सभी सदस्य परस्पर सहयोगी हैं। आपका परिवार एक आदर्श आर्य परिवार है, यह हमने अनेक बार आपके निवास पर जाकर अनुभव किया है।

उस लेख की उपुर्यक्त पंक्तियों को हमने 10 जनवरी, 2017 को लिखा था। आज श्रद्धोय सरल जी को स्मरण कर उसी लेख को कहीं-कहीं पर कुछ-कुछ संशोधित किया है अर्थात् हैं के स्थान पर थे कर दिया है। लगभग 78 वर्षीय श्रद्धेय श्री सत्यपाल सरल जी का दिनांक 27 जनवरी, 2025 की सायं को देहरादून के इन्द्रेश अस्पताल में निधन हुआ है। वह लम्बे समय से रूग्ण थे। उन्हें लिवर कैंसर जैसा कोई रोग था। काफी लम्बा व महंगा उनका उपचार चला। उनके परिवार ने न केवल प्रभूत धन ही सरल जी के उपचार पर व्यय किया वहीं उनके सभी परिवारिकजनों ने उनकी प्रशंसनीय सेवा की। हम उनसे मिलने उनके निवास पर जाते थे। कुछ कुछ दिनों के अन्तराल पर फोन पर उनके हालचाल पूछते रहते थे। उनका भी फोन आया करता था। लगभग डेढ़ महीने पहले भी अपने मित्र श्री राजेन्द्रकुमार अधिवक्ता के साथ उनसे मिलने गये थे। वह उस समय बहुत कमजोर हो गये थे। स्वतन्त्रतापूर्वक उठ-बैठ नहीं पाते थे और बिना सहारे के चल नहीं पाते थे। कल उनकी देहरादून में उनके पारिवारिक जनों, मित्रों व आर्यबन्धुओं सहित आर्य संस्थाओं के अधिकारियों की उपस्थिति में पूर्ण वैदिक रीति से अन्त्येष्टि सम्पन्न हुई है। अन्त्येष्टि संस्कार गुरुकुल पौंधा, देहरादून के ब्रह्मचारियों ने आचार्य पं. चन्द्रभूषण शास्त्री जी के निर्देशन में कराया। सैकड़ों की संख्या में उपस्थित सरल जी के शुभचिन्तकों ने इस संस्कार को देखकर वैदिक अन्त्येष्टि संस्कार की श्रेष्ठता को अनुभव किया। हम श्री सत्यपाल सरल जी को अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ईश्वर उनको सद्गति वा मोक्ष प्रदान करें और उनके परिवारजनों को इस वियोगजन्य दुःख को सहन करने की शक्ति दे। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य